शिव के भक्तो के लिए आज का दिन बहुत ही शुभ दिन है। आज भगवान शिव का सबसे बड़ा उत्सव है। कहा जाता है कि आज के दिन शिव अपनी कृपा अपने भक्तो पर रखते है। शास्त्रों के अनुसार महाशिवरात्रि फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को मनायी जाती है। हमारे हिन्दू गंथों के अनुसार शिवरात्रि का महत्व स्वयं भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया था। भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया था कि अभिषेक, वस्त्र, धूप तथा पुष्प से शिव प्रसन्न नहीं होते, जितने कि शिवरात्रि के दिन व्रत - उपवास रखने से होते है। शिवपुराण के अनुसार आज के दिन भगवान शिव की विधि - विधान सहित पूजा करने भगवान शिव अपने भक्तो से प्रसन्न रहते है। इसलिए आज हम आपको यहां विधि - विधान सहित भगवान शिव की पूजा कैसे करनी चाहिए और आप के दिन किन मंत्रो का जाप करना चाहिए बता रहे है।

ऐसे करें शिव की पूजा - आज के दिन सुबह जल्दी उठ कर स्नान आदि करने के बाद शिव की प्रतिमा को पंचामृत - दूध , दही ,तुलसी ,शहद , शुद्ध घी से उनको स्नान कराये। इसके बाद शिव जी को फूल, धतूरा , बेल पत्र , आकड़े के फूल आदि चढ़ाए। इसके बाद उनको मीठे के भोग लगाकर तिलक करें। मोली का धागा शिव और पार्वती को चढ़ाये। अब आप शिव की आरती करें। इसके बाद अपने व्रत सफल की कामना करें और प्राथना करें।

इन मन्त्रों का करें जाप -


आज के दिन शिव की रुद्राक्ष की माला को जपे इसके साथ ही पुरे दिन इन मन्त्रों का जाप करें।

' देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोस्तु ते।
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।
तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि।।'

शिव व्रत की कथा -

एक समय वाराणसी के जंगल में एक गुरुद्रुह नाम का भील रहता था । वह अपने और अपने परिवार को पलने के लिए जंगली जानवरों का शिकार किया करता था। एक बार शिवरात्रि पर वह शिकार करने वन में गया। उस दिन उसे दिनभर कोई शिकार नहीं मिला और रात भी हो गई। तभी वो झील के किनारे पेड़ पर ये सोचकर चढ़ गया कि कोई भी जानवर पानी पीने आएगा तो शिकार कर लूंगा। वो पेड़ बिल्ववृक्ष था और उसके नीचे शिवलिंग स्थापित था।
वहां एक हिरनी आई। शिकारी ने उसको मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया तो बिल्ववृक्ष के पत्ते और जल शिवलिंग पर गिरे। इस प्रकार रात के पहले प्रहर में अनजाने में ही उसके द्वारा शिवलिंग की पूजा हो गई। हिरनी भी भाग गई।
थोड़ी देर बाद एक और हिरनी झील के पास आ गई। शिकारी ने उसे देखकर फिर से अपने धनुष पर तीर चढ़ाया। इस बार भी रात के दूसरे प्रहर में बिल्ववृक्ष के पत्ते व जल शिवलिंग पर गिरे और शिवलिंग की पूजा हो गई। वो हिरनी भी भाग गई। इसके बाद उसी परिवार का एक हिरण वहां आया इस बार भी वही सब हुआ और तीसरे प्रहर में भी शिव की पूजा इस तरह हो गई और वो हिरण भाग गया। फिर हिरण अपने झुंड के साथ वहां पानी पीने आया सबको एक साथ देखकर शिकारी बड़ा खुश हुआ और उसने फिर से अपने धनुष पर बाण चढ़ाया, जिससे चौथे प्रहर में पुन: शिवलिंग की पूजा हो गई।
इस तरह शिकारी दिनभर भूखा-प्यासा रहकर रात भर जागता रहा और चारों प्रहर अनजाने में ही उससे शिवजी की पूजा हो गई, जिससे शिवरात्रि का व्रत पूरा हो गया। इस व्रत के प्रभाव से उसके पाप भस्म हो गए और पुण्य उदय होते ही उसने हिरनों को मारने का विचार छोड़ दिया। इसके बाद शिवलिंग से स्वयं भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने उस शिकारी को वरदान दिया कि त्रेतायुग में भगवान राम तुम्हारे घर आएंगे और तुमसे मित्रता करेंगे। इस प्रकार अनजाने में शिवरात्रि पर व्रत के प्रभाव से भगवान शिव प्रसन्न हो कर उस शिकारी को मोक्ष की अनुमति भी दे दी , इससे उनके सारे पाप धूल गए।

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