10,000 हाथियों की ताकत वाला भीम आखिर कैसे 1 अजगर से हार गया था, जानिए
जब पांडव युद्ध में सबकुछ हार गए तब उन्हें 1 साल का अज्ञातवास और 12 साल का वनवास भोगना पड़ा। वनवास के दौरान उनके साथ कई ऐसी घटनाएं हुई जिनका फायदा उन्हें आगे चलकर युद्ध में मिला।
महाभारत की एक कथा के अनुसार भीम को इस दौरान वन में एक अगजर मिला। इस अगजर ने भीम को पकड़ लिया। भीम जिन्हे कि बेहद ताकतवार माना जाता है उनमे 10 हजार हाथियों के समान बल था। वे किसी के भी सामने नही हारते थे। लेकिन उस अजगर के सामने वे चाह कर भी कुछ नहीं कर पाए और ना ही उसके चंगुल से अपने आपको छुड़ा पाए। इसके बाद भीम मूर्छित हो गए।
युधिष्ठिर वहां भीम को खोजते हुए पहुंचे तो अजगर से से पूछा कि क्या आप कोई देव है क्योकिं कोई साधारण प्राणी भीम को इस तरह पकड़ नहीं सकता है जिस तरह आपने पकड़ रखा है।
उस अजगर ने युधिष्ठिर से कहा कि मैं तुम्हारा ही पूर्वज हूँ। मेरा नाम नहुष है। मैंने बहुत से यज्ञ किए है जिस कारण मैं इतना शक्तिशाली हो गया था और मुझे स्वर्ग का इंद्र बना दिया गया। इस बात से मुझे अहंकार हुआ और मैंने अपनी पालकी सप्तऋषियों से उठवाई और अगस्त्य ऋषि का भी मैंने बहुत अपमान किया है जिसके कारण उन्होंने मुझे अजगर बनने का श्राप दिया। जब मुझे अपनी भूल का अहसास हुआ तो मैंने उनसे माफ़ी मांगी।
उस समय अगस्त्य ऋषि ने कहा कि जब कोई व्यक्ति आ कर तुम्हारे प्रश्नों का सही उत्तर देगा तब तुम इस श्राप से मुक्त हो जाओगे। अगस्त्य ने उन्हें यह भी वरदान किया कि जब तुम अजगर बन कर रहोगे तब यदि कोई तुमसे बलवान व्यक्ति भी तुम्हे मिलता है तो तुम्हारे सामने उसकी शक्ति श्रीण हो जाएगी और तुम उसे अपना आहार बना पाओगे। भले ही भीम मेरा वंशज है लेकिन पशु स्वभाव के कारण मैं इसे नहीं छोड़ सकता क्योकिं यह मेरा आहार है।
मैं बहुत दिनों से भूखा हूँ। इसलिए अजा भीम को अपना आहार बनाऊगा। इस पर युधिष्ठिर ने कहा कि कृपा कर के मेरे भाई को छोड़ दीजिए मैं आपके प्रश्नों का उत्तर देने के लिए तैयार हूँ।
युधिष्ठिर की बात सुनकर अजगर ने अपना पहला प्रश्न पूछा कि ब्राह्मण किसे कहते है? इस के जवाब में युधिष्ठिर ने कहा कि जो इंसान सत्य, दया, दान,करुणा, क्षमा, तपस्या और ज्ञान से युक्त हो उसे ही ब्राह्मण कहते हैं। इस पर अजगर ने कहा कि ये सारे गुण तो क्षुद्र में भी होते है और ब्राह्मण में क्षुद्र के समान गुण हो तो ब्राह्मण कौन है?
इस पर युधिष्ठिर ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति क्षुद्र जाति का हो और उसमे ये सारे गुण हो तो उसे ब्राह्मण ही कहा जाना चाहिए लेकिन यदि किसी ब्राह्मण में ये गुण ना हो तो उसे क्षुद्र ही समझना चाहिए।
अजगर ने दूसरा प्रश्न पूछा कि मनुष्य को क्या जानना का प्रयत्न करते रहना चाहिए? इस पर युधिष्ठिर ने कहा कि मनुष्य को सदैव परमात्मा को जानने का प्रयत्न करना चाहिए। जो परमात्मा को जाना लेता है उसे किसी और चीज को जानने की जरूरत ही नहीं होती है।
युधिष्ठिर की धर्मयुक्त बातें सुनकर अजगर बने नहुष को बहुत संतोष हुआ। इसके बाद उसने भीम को छोड़ दिया और उसे भी अपने श्राप से मुक्ति मिली।