आखिर लोग क्यों कहते हैं मजबूरी का नाम महात्मा गांधी, जानिए इसके पीछे का राज
अक्सर हम यह पंक्ति सुनते हैं कि मजबूरी का नाम महात्मा गांधी है। जब किसी को लगता है कि वह लाचार और मजबूर है तथा उसके सामने कोई विकल्प नहीं है तब वह यह बात कहता है। एक तरह से वह हार मानकर यह बात कहता है।
अब थोड़ा हम महात्मा गांधी के व्यक्तित्व की बात भी कर लेते हैं। यह सही है कि अकेले महात्मा गांधी के प्रयासों की बदौलत इस देश को आजादी नहीं मिली बल्कि उनके प्रयासों के साथ-साथ इस देश के क्रांतिकारी वीरों ने इस धरा शिरोमणि मातृभूमि के लिए अपने आपको सर्वस्व समर्पित कर दिया। बेशक पूरे देश ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। लेकिन महात्मा गांधी के प्रयासों को नकारा नहीं जा सकता है।
महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा के बलबूते इस देश को आजाद कराने में अपनी अद्भुत एवं अकल्पनीय भूमिका निभाई। याद रखिये, सत्य और अहिंसा का रास्ता मजबूरी का रास्ता नहीं है।
लोग तो जब हारने लगते हैं और विकल्प नहीं दिखता है तब कहते हैं कि मजबूरी का नाम महात्मा गांधी है लेकिन एक बार सोंच कर देखिये, क्या महात्मा गांधी हार गए थे? इसका जवाब पूरी दुनिया जानती है। महात्मा गांधी मजबूरी का नाम नहीं है बल्कि यह सत्य और अहिंसा के एक सच्चे योद्धा का नाम है। उनकी एक पंक्ति है-"हिम्मत मांसपेशियों की ताकत से नहीं बल्कि कलेजे की ताकत से आंकी जाती है। उन्होंने ,हमेशा सत्य और अहिंसा के जरिए देश को स्वतंत्रता दिलाने को ही प्राथमिकता और इस रास्ते को चुनना कोई मजबूरी नहीं है।