वामन पुराण के अनुसार श्रीदामा नाम का एक राक्षस था। उसने अपनी ताकत के बल पर कई देवताओं को भी हराया था। उसने भगवान विष्णु के श्रीवत्स को चुराने का भी विचार किया। जब इस बात का पता भगवान विष्णु को चला तो वे घोर तपस्या करने लगे और शिव जी ने प्रसन्न होकर उन्हें सुदर्शन चक्र दिया जो किसी का भी नाश कर सकता था। उसका नाश करने के बाद ये वापस लौट कर आ सकता था। ये एक ऐसा शस्त्र था जो अपने लक्ष्य को खत्म करके ही वापस लौटता था।

विष्णु जी ने शिव जी से कहा क्या इसका परीक्षण मैं आपके ऊपर कर सकता है। भोलेनाथ ने हां कर दी। परिक्षण करने के लिए उन्होंने इसे भगवान शिव पर छोड़ा और सुदर्शन चक्र से भगवान शिव के 3 टुकड़े हो गए। इसके पश्चात विष्णु जी को अपने किये पर पश्चाताप होने लगा। वे पुनः भगवान शिव की तपस्या करने लगे।

इसके बाद विष्णु ने फिर से भगवान शिव की तपस्या की और श्रमा याचना की। इस पर विष्णु जी से शिव जी ने कहा आप अपने को दोषी न माने। मुझे किसी भी प्रकार से नष्ट नही किया जा सकता है। आपने मेरे जिस भौतिक शरीर के तीन टुकड़े किये है वो अब हिरण्याक्ष, सुवर्णाक्ष और विरूपाक्ष नाम से प्रसिद्ध होंगे। भगवान शिव का उत्तर सुन कर भगवान विष्णु को संतुष्टि मिली और श्रीदामा का नाश किया।

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