यह बात सभी जानते हैं कि महाभारत युद्ध में पांडवों की जीत हुई ​थी, लेकिन युद्ध के आखिरी दिन अश्वत्थामा ने शिविर में सो रहे द्रौपदी के पुत्रों की हत्या कर दी थी। इसके बाद पांडवों ने अश्वत्थामा को पकड़ लिया और द्रौपदी के समक्ष पेश किया, लेकिन द्रौपदी ने उसे दंड देने के बजाय जीवित छोड़ दिया। इस स्टोरी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि द्रौपदी ने ऐसा क्यों किया?

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महाभारत महाकाव्य के अनुसार, जब युद्ध समाप्त हो गया तब श्रीकृष्ण पांडवों को लेकर शिविर से कहीं दूर चले गए थे। शिविर में पांडवों को अनुपस्थित देखकर द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने पांडवों के शिविर में आग लगा दी, जिससे शिविर में सो रहे पांडवों के 5 पुत्रों की मृत्यु हो गई।

जब अगले दिन श्रीकृष्ण और पांडव अपने शिविर में लौटे तब वे अपने 5 पुत्रों के शव को देखकर बहुत दुखी हुए। द्रौपदी का क्ररूण क्रंदन सुनकर अर्जुन ने कहा कि अश्वत्थामा को इसका दंड जरूर देंगे और उसके कटे हुए मस्तक को उनके सामने लेकर आएंगे।

इतना कहने के बाद पांडव रथ में सवार होकर अश्वत्थामा को ढूंढने के लिए निकल पड़े। अश्वत्थामा ने पांडवों से बचने की खूब कोशिश की, लेकिन वह नाकाम रहा। यहां तक कि उसने स्वयं को बचाने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग भी किया बावजूद इसके अर्जुन ने उसे पकड़ लिया।

अर्जुन ने गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का वध नहीं किया, बल्कि अपने वचन के अनुसार उसे बांधकर द्रौपदी के पास ले आए। अश्वत्थामा को देखते ही भीम ने कहा कि अब इस दुष्ट को जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। द्रौपदी चाहती तो उसे मृत्युदंड दे सकती थीं, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।

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द्रौपदी ने पांडवों से कहा कि आपने जिस गुरु से अस्त्र ज्ञान प्राप्त किया है, यह उसी गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र है। इसलिए अश्वत्थामा को जीवित छोड़ दीजिए। इस प्रकार द्रौपदी की यह बात सुनकर अर्जुन ने अश्वत्थामा के मस्तक की मणि निकालकर उसे जीवित ही छोड़ दिया।

गौरतलब है कि द्रौपदी बहुत दयालु और धर्म ज्ञानी थीं, इसीलिए अपने 5 पुत्रों के हत्यारे अश्वत्थामा को जीवन दान दे दिया। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि अश्वत्थामा आज भी जीवित है और महाभारत काल से ही धरती पर भटक रहा है।

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