धर्मराज युधिष्ठिर को आखिर क्यों देखना पड़ा था नरक, आखिर क्यों मिली थी ये सजा?
PC: MSN
महाभारत में पांडव सशरीर स्वर्ग जाने के रास्ते पर निकले थे जिसकी कथा के बारे में आपने सुना होगा। उस कथा के अनुसार, स्वर्ग जाने के रास्ते में ही द्रौपदी, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की मृत्यु हो गई, सिर्फ युधिष्ठिर अकेले सशरीर स्वर्ग पहुंचने में कामयाब हुए। लेकिन उन्हें कुछ देर के लिए नर्क भी देखना पड़ा। इसकी जानकारी महाभारत में दी गई और आपको हम उसी बारे में बताने जा रहे हैं।
जब युधिष्ठिर पहुंचें स्वर्ग
पांडव जब स्वर्ग जाने के लिए निकले तो रास्ते में ही द्रौपदी, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की मृत्यु हो गई। अकेले युधिष्ठिर ही सशरीर स्वर्ग आ पाए। यहां उन्होंने देखा कि दुर्योधन सिंहासन पर बैठा है। युधिष्ठिर ने वहां बैठे देवताओं से कहा कि ‘मेरे भाई जिस लोक में गए हैं, मैं भी वहीं जाना चाहता हूं। मुझे स्वर्ग की इच्छा नहीं है।’ तब देवताओं ने उन्हें एक देवदूत के साथ जाने को कहा।
जब युधिष्ठिर ने देखा नरक का नजारा
देवदूत युधिष्ठिर को अँधेरे वाले स्थान पर ले गए जहाँ पर कई सारे मुर्दे थे। लोहे की चोंच वाले कौए और गिद्ध मंडरा रहे थे। इस जगह का नाम नरक था। वहां से बेहद ही तीक्ष्ण दुर्गन्ध आ रही थी और लोगों के चीखने चिल्लाने की आवाजें भी सुनाई दे रही थी। युधिष्ठिर ने जब उनसे पूछा ‘आप कौन हैं?’ तो उन्होंने कर्ण, भीम, अर्जुन, नुकल, सहदेव व द्रौपदी के रूप में अपना परिचय दिया। जब युधिष्ठिर को पता चला कि उनके भाई नरक में है तो उन्होंने वहीं पर रुकने का फैसला किया।
इस कारण युधिष्ठिर को देखना पड़ा नरक
देवदूत ने यह बात जाकर देवराज इंद्र को बताई। तभी इंद्र देवताओं के साथ वहां पहुंचे। उन्होंने युधिष्ठिर को जानकरी देते हुआ कहा कि ‘तुमने अश्वत्थामा के मरने की बात कहकर छल से द्रोणाचार्य को उनके पुत्र की मृत्यु का विश्वास दिलाया था। यही वजह है कि तुम्हे थोड़े समय के लिए नर्क देखना पड़ा। अब तुम मेरे साथ स्वर्ग चलो। तुम्हारे भाई पहले ही वहां पहुंच चुके हैं।’
जब युधिष्ठिर ने छोड़ा मानव शरीर
देवराज इंद्र के कहने पर युधिष्ठिर ने देवनदी गंगा में स्नान किया। इस से उनका मानव शरीर नष्ट हो गया और एक दिव्य शरीर मिला। स्वर्ग जाकर युधिष्ठिर ने देखा कि उनके चारों भाई, कर्ण, भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रौपदी वहां पहले से बैठे हुए थे। युधिष्ठिर ने वहां भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन किए। अर्जुन उनकी सेवा कर रहे थे। अपने भाइयों और सगे-संबंधियों को देखकर युधिष्ठिर बहुत प्रसन्न हुए।