दोस्तों आपको बात दे की भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक का समय श्राद्ध व पितृ पक्ष कहलाता है। इन 16 दिनों में पितरों को खुश करने के लिए ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है इसके साथ ही पंचबलि यानी गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटियों को भोजन सामग्री दी जाती है। शास्त्रों के अनुसार दोस्तों आपको बता दे की श्राद्ध के दौरान कोई भी शुभ कार्य, विशेष पूजा-पाठ और अनुष्‍ठान नहीं करना चाहिए। वहीं, देवताओं की नित्‍य पूजा को बंद नहीं करना चाहिए।

दोस्तों अआप्को बात दे की भारत के अलावा दूसरे देशों की प्राचीन सभ्यताओं में भी कौवे को महत्व दिया गया है। प्राचीन समय से एक धारणा चली आ रही है कि यदि कौवा आंगन में आकर कांव-कांव करे, तो घर में जल्द ही कोई मेहमान आता है। दोस्तों आपको बात दे की गरुड़ पुराण में बताया है कि कौवे यमराज के संदेश वाहक होते हैं। श्राद्ध पक्ष में कौएं घर-घर जाकर खाना ग्रहण करते हैं, इससे यमलोक में स्थित पितर देवताओं को तृप्ति मिलती है।

दोस्तों आपको बात दे की कौआ यमस्वरूप है। वह यमराज का पुत्र एवं शनिदेव का वाहक है। उसके आदेश से देह त्यागने के बाद लोग स्वर्ग और नरक में जाते हैं। बाल्मिकी रामायण के काम भुसुंडी में यह वर्णन मिलता है। उल्लेख है कि कौआ एक ब्राह्मण है। दोस्तों वह गुरु के अपमान के कारण श्रापित हो गया था। तब मुनि के शाप से वह चांडांल पक्षी कौआ हो गया। इसके बावजूद वह भगवान श्रीराम का स्मरण करता रहा।

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