देश में कितने नोट छपेंगे इस बारे में फैसला लेने का अधिकार भारतीय रिजर्व बैंक का होता है। इसके बावजूद भी बहुत से जाली नोट हमेशा सर्कुलेट होते हैं। ऐसे में बैंक इस बात को सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय करता है। इनमे से एक है सिक्योरिटी थ्रेड का इस्तेमाल करना।

जब भी हम नोट को हाथ में लेकर चेक करते है तो इसमें हमें उभरा हुआ भाग दिखाई देता है जो कि सिक्योरिटी थ्रेड होता है। इसका इस्तेमाल जाली नोटों से बचने के लिए किया जाता है। सबसे पहले इसका इस्तेमाल इंग्लैंड में किया गया था। साल 1848 में इसका पेटेंट भी कराया गया।

इंटरनेशनल बैंक नोट सोसाइटी (IBNS) के अनुसार, बैंक ऑफ इंग्लैंड द्वारा साल 1948 में पहली बार पहली मेटल-स्ट्रिप करेंसी जारी की गई थी। अगर आप इसे रौशनी में देखेंगे तो आपको नोट पर ये एक काली लाइन के समान दिखाई देगा। इसके बाद साल 1984 में बैंक ऑफ इंग्लैंड ने टूटे धातु के धागों जैसे लंबे डैश के साथ 20 पाउंड का नोट जारी किए।

नकली नोट बनाने वालों ने इसका भी एक तोड़ निकाल लिया और अल्यूमिनियम के टूटे धागे का सुपर ग्लू का इस्तेमाल करना शुरू दिया था। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान से नकली नोट के आने के डर से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने अपने नोटों पर सिक्योरिटी थ्रेड का इस्तेमाल करना शुरू किया। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी अक्टूबर 2000 में 1000 रुपये थ्रेड वाले नोट जारी किए।

अब 2000 रुपये के नए नोट्स पर ब्रोकेन मैटेलिक स्ट्रिप दिखती है। इसके ऊपर हिंदी में भारत और अंग्रेजी में RBI का प्रिंट होता है। यह प्रिंट रिवर्स में होता है. इसी तरह अब हर नोट पर सिक्योरिटी थ्रेड लगा होता है।

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