बिहार में एक गांव है, जहां हिंदू समुदाय के लोग भी मुहर्रम मनाते हैं। इसके पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्‍प है। ग्रामीण बताते हैं कि पूर्वजों द्वारा किए गए वादे काे निभाते हुए यह परंपरा निभाई जा रही है। उम्‍मीद जताई जाती है कि आनेवाली पीढि़यां भी यह परंपरा बरकरार रखेंगी। बिहार के कटिहार जिले में हसनगंज प्रखंड पड़ता है वहां एक गांव है महम‍दिया हरिपुर। यहां हिंदू समुदाय भी दशकों से मुहर्रम मनाता आ रहा है।

दरअसल इस गांव में पहले वकील मियां नाम के एक शख्स रहते थेबिहार के कटिहार जिले में हसनगंज प्रखंड पड़ता है। वहां एक गांव है महम‍दिया हरिपुर। यहां हिंदू समुदाय भी दशकों से मुहर्रम मनाता आ रहा है। अपने बेटे के इंतकाल के बाद वो गांव छोड़कर चले गए। जाने से पहले उन्‍होंने अपने मित्र छेदी शाह को गांव में मुहर्रम मनाने को कहा था। चूंकि यह गांव हिंदू बहुल इलाका है और 1200 की आबादी वाले इस गांव में वकील मियां के जाने के बाद कोई मुस्लिम परिवार नहीं बचा है। ऐसे में उनसे किए गए वादे को‍ निभाते हुए इस गांव में हिंंदू ही मुहर्रम मनाते आ रहे हैं।

इस्‍लाम में मुहर्रम का बड़ा ही महत्‍व है। इसे मुस्लिम समुदाय हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए मनाते हैं। वे पैगंबर मुहम्‍मद के छोटे नवासे थे। 10वीं तारीख को यौम-ए-आशूरा कहा जाता है। इस दिन इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए मुस्लिम समुदाय मातम मनाता है। मुस्लिम समुदाय को आपने अक्‍सर मुहर्रम मनाते देखा होगा।

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