महाभारत के दो वीर योद्धा, जिन्हें हराने का साहस पृथ्वी पर किसी में नहीं था !
इंटरनेट डेस्क। महाभारत हिन्दुओं के प्राचीन ग्रंथों में से एक हैं। आपने कई टीवी धारावाहिकों और फिल्मों के माध्यम से महाभारत के चरित्र देखें होंगे लेकिन कुछ ऐसी बातें महाभारत से जुड़ी हैं, जिन्हें नोटिस कर पाना हर किसी के लिए संभव नहीं हो पाता हैं। आज हम आपको महाभारत के दो ऐसे पात्रों के बारे में बताएँगे जिनके आगे बड़ी से बड़ी सेना भी हार मानने पर मजबूर हो जाती थी। चलिए जानते हैं इनके बारे में ...
गुरु द्रोणाचार्य और भीष्म पितामाह दो ऐसे पात्र महाभारत में थे जो इंद्र के सिंहासन को हिलाने की क्षमता रखते थे। सबसे पहले बात करते हैं गुरु द्रोणाचार्य की जिन्होंने कौरवों और पांडवो को गुरु शिक्षा दी। वे पांडवों में अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धर्नुधर बनाना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने एकलव्य से गुरु दक्षिणा के रुप में उसका अंगूठा मांग लिया था ताकि कोई भी अर्जुन से अच्छा धर्नुधारी नहीं बन पाए। हालांकि उन्हें कौरवों के साथ पांडवों के खिलाफ युद्ध करना पड़ा।
पुत्र अश्वत्थामा के कौरवों के साथ मित्रता होने से गुरु द्रोण को महाभारत के युद्ध में कौरवों की और से लड़ना पड़ा। युद्ध में गुरु द्रोण के सामने अर्जुन के अलावा कोई और योद्धा कामयाब नहीं हो सकता था। विराट नरेश की हत्या करने के बाद द्रोणाचार्य पांडवो के लिए काल बन गए थे। ऐसी स्तिथि में पांडवो ने धर्म की रक्षा के लिए षणयंत्र का सहारा लिया और द्रोणाचार्य को छल से मार गिराया।
बात करते हैं महाभारत के दुसरे वीर योद्धा की जिनका नाम हैं भीष्म पितामाह। ये कौरवो और पांडवो के तात श्री थे। इन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, जिसकी वजह से युद्ध में इन्हें मार पाना संभव नहीं था। यह वो महान योद्धा था, जिसके सामने श्रेष्ठ धनुर्धारी अर्जुन भी शस्त्र उठाने से घबराता था। करवों की तरफ से लग रहे पितामह को भगवन कृष्ण की सहायता से पांडवों ने मृत्यु शैया पर लिटा दिया। युद्द समाप्ति पर उन्हें मोक्ष की प्राप्ती हुई।