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आज अयोध्या में भगवान राम के दर्शन से लाखों लोगों की आंखों में खुशी के आंसू आ गए, जो 500 साल के लंबे इंतजार के अंत का प्रतीक है। 22 जनवरी 2024 को प्राण प्रतिष्ठा समारोह अत्यंत श्रद्धापूर्वक आयोजित हुआ। भगवान राम की मूर्ति के अनावरण के बाद से हर दिल में 'जय श्री राम' का उद्घोष गूंज उठा।

हालाँकि, मूर्ति को देखने के बाद मन में एक प्रश्न उठ सकता है - मूर्ति का रंग काला क्यों है? आइए भगवान राम की मूर्ति में काले रंग के महत्व को समझकर इस दुविधा को दूर करें।

भगवान राम की मूर्ति काली क्यों है?
भगवान राम की मूर्ति शिला पत्थर से बनाई गई है, जिसे कृष्ण शिला भी कहा जाता है, जो स्वाभाविक रूप से गहरे या काले रंग की होती है। अपने अनोखे गुणों के लिए जाना जाने वाला यह पत्थर ही भगवान राम की मूर्ति के विशिष्ट रंग का कारण है। इस पत्थर का चुनाव मनमाना नहीं है बल्कि राम की पूजा के दौरान किए जाने वाले पवित्र अनुष्ठानों के अनुरूप है।

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राम लला की मूर्ति में इस्तेमाल हुए पत्थर की खूबी:

राम लला की मूर्ती को इस पत्थर से ही आखिर क्यों बनाया गया है। इस सवाल का जवाब आपको इस पत्थर के गुणों में देखने को मिल जाएगा। पत्थर की संरचना यह सुनिश्चित करती है कि इसमें कोई परिवर्तन न हो, जो इसकी स्थिरता और लचीलेपन को दर्शाता है। रामलला की मूर्ति का दूध से अभिषेक किया जाएगा। लेकिन ये दूध के इस्तेमाल से भी खराब नहीं होगी। इस पत्थर का हजार साल तक कुछ भी नहीं बिगड़ता है। इसमें किसी भी तरह का बदलाव नहीं होगा।

वाल्मिकी रामायण में वर्णन:
वाल्मिकी रामायण में भगवान राम का स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है कि उनका रंग काला था, उन्हें श्यामवर्णी (गहरा रंग), सुंदर, कोमल और मनोरम बताया गया है। इसलिए, शिला पत्थर का उपयोग महाकाव्य में भगवान राम के काव्यात्मक वर्णन के अनुरूप है।

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बाल रूप में ही क्यों बनाई गई है मूर्ती:
भगवान राम को उनके बचपन के रूप में चित्रित करने का चुनाव भी एक विशिष्ट उद्देश्य को पूरा करता है। जन्मस्थान में पूजा परंपरा में देवता के बाल रूप की पूजा की जाती है। यह प्रतिनिधित्व मासूमियत और सादगी पर जोर देता है, जिससे भक्तों के साथ आध्यात्मिक संबंध में गहराई जुड़ जाती है।

प्राण प्रतिष्ठा का महत्व:
प्राण प्रतिष्ठा, मूर्ति में दिव्य ऊर्जा का आह्वान करने वाली प्रतिष्ठा प्रक्रिया, मूर्ति पूजा का एक अभिन्न अंग है। प्राण प्रतिष्ठा के बिना मूर्ति अधूरी मानी जाती है। इस समारोह में मूर्ति में देवता की दिव्य उपस्थिति को आमंत्रित करने के लिए मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, जिससे यह दिव्य का जीवित अवतार बन जाता है।

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