हिंदू मान्यताओं के अनुसार दुर्गा पूजा के लिए मां दुर्गा की जो मूर्ति बनती है, उसके लिए चार चीजें बहुत जरूरी होती है। पहली गंगा तट की मिट्टी, दूसरा गोमूत्र, तीसरा गोबर और चौथा वेश्या घर की मिट्टी या किसी ऐसे स्थान की मिट्टी जहां जाना निषेध हो, इन सभी को मिलाकर बनाए गए मूर्ति ही पुण्य मानी जाती है। लेकिन आखिर मां दुर्गा की मूर्ति बनाते समय वेश्या घर की मिट्टी क्यों मिलाई जाती है।

जब भी कोई वहां से मिट्टी लेने जाता है तो वापस नहीं लोटता है, अगर वेश्या मिट्टी देने से मना भी कर देती है, तो भी वह उनसे मांगता रहता है। जैसे-जैसे समय बदलता जा रहा है वैसे-वैसे पुजारियों के अलावा मूर्ति बनाने वाले कलाकार भी वेश्यालय से मिट्टी लेकर आते हैं।

ऐसी मान्यता है, कि जब कोई व्यक्ति वेश्यालय के घर जाता है। तो वह अपनी पवित्रता द्वार पर ही छोड़ जाता है। भीतर प्रवेश करने से पूर्व उसके अच्छे कर्म और शुद्धियां बाहर ही रह जाती है। इसलिए वहां के आंगन की मिट्टी सबसे पवित्र हुई। इसलिए उसका प्रयोग दुर्गा मूर्ति बनाने के लिए किया जाता है।

दूसरी मान्यता के अनुसार दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है। कहा जाता है कि महिषासुर ने देवी दुर्गा के सम्मान के साथ खिलवाड़ किया था। उसने उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाया था, उसके अभद्र व्यवहार के कारण ही मां दुर्गा को क्रोध आया और अंततः उन्होंने उसका वध कर दिया इस कारण से वेश्या करने वाली स्त्रियां जिन्हें समाज में सबसे निकृष्ट का दर्जा दिया गया है। उसी के घर का मिट्टी पवित्र माना जाता है. और उसका उपयोग मूर्ति के लिए किया जाता है।

तीसरी मान्यता के अनुसार वेश्याओं ने अपने जो जिंदगी चुनी है, वह उनका सबसे बड़ा अपराध है। वेश्याओं को इन बुरे कर्मों से मुक्ति दिलवाने के लिए उनके घर की मिट्टी का उपयोग होता है। मंत्र जाप के जरिए उनके कर्मों को शुद्ध करने का प्रयास किया जाता है।

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