दुनिया भर में कई ऐसे मंदिर है जो कई चमत्कारों के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध है। लोग इन मंदिरों के दर्शन करने के लिए दूर दूर से आते हैं। वैज्ञानिक भी ऐसे मंदिरों का रहस्य नहीं सुलझा पाते हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही श्री कृष्ण के मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो दक्षिण भारतीय राज्य केरल के थिरुवरप्पु में स्थित है। कहा जाता है कि ये मंदिर करीब 1500 साल पुराना है।

बताया जाता है कि वनवास के दौरान पांडव, भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति की पूजा करते थे और उसे भोग भी लगाते थे। पांडवों ने वनवास समाप्त होने के बाद तिरुवरप्पु में ही मूर्ति को छोड़ दिया था, क्योंकि यहां के मछुआरों ने मूर्ति को यहाँ पर छोड़ने की प्रार्थना की। मछुआरों ने भगवान श्रीकृष्ण की ग्राम देवता के रूप में पूजा करनी शुरु कर दी। लेकिन वे संकट से घिर गए तो एक ज्योतिष ने उनसे कहा कि आप सभी पूजा ठीक तरह से नहीं कर पा रहे हैं। इसके बाद उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को एक समुद्री झील में विसर्जित कर दिया।

केरल के एक ऋषि विल्वमंगलम स्वामीयार नाव से एक बार यात्रा कर रहे थे तब उनकी नाव वहां अटक गई। बहुत कोशिश करने के बाद भी नाव आगे नहीं बढ़ पाई। तब उनके मन में सवाल खड़ा होने लगा कि ऐसा क्या है कि उनकी नाव आगे नहीं बढ़ रही है। उन्होंने नदी के अंदर डुबकी लगा कर देखा तो वहां पर एक मूर्ति थी। ऋषि विल्वमंगलम स्वामीयार ने मूर्ति को पानी में से निकाली और अपनी नाव में रख ली। इसके बाद वह एक वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए रुके और मूर्ति को वहीं रख दी। फिर उन्होंने मूर्ति को वहां से उठाने की कोशिश की लेकिन वो मूर्ति वही पर चिपक गई। इसके बाद वहीं पर मूर्ति स्थापित कर दी गई। इस मूर्ति में भगवान कृष्ण का भाव उस समय का है जब उन्होंने कंस को मारा था तब उन्हें बहुत भूख लगी थी। इस मान्यता की वजह से उन्हें हमेशा भोग लगाया जाता है।

दिन में 10 बार लगाता है भोग

यहां पर स्थित भगवान के विग्रह को भूख बर्दाश्त नहीं होती है। भगवान को दिन में 10 बार भोग लगाया जाता है। भोग ना लगाने पर उनका शरीर कमजोर हो जाता है। यह भी मान्यता है कि प्लेट में से थोड़ा-थोड़ा करके चढ़ाया गया प्रसाद गायब हो जाता है। यह प्रसाद भगवान श्रीकृष्ण खुद ही खाते हैं।


ग्रहण काल में भी ये मंदिर नहीं होता है बंद

पहले इस मंदिर को ग्रहण के समय बंद कर दिया जाता था, लेकिन एक बार जो हुआ उसे देखकर सभी लोग हैरान रह गए। ग्रहण खत्म होते-होते उनकी मूर्ति सूख जाती है, कमर की पट्टी भी खिसककर नीचे चली जाती थी। जब इस बात की जानकारीआदिशंकराचार्य को हुई तो वह खुद इस स्थिति को देखने और समझने के लिए वहां पहुंचे। इसके बाद उन्होंने कहा कि ग्रहण काल में भी मंदिर खुला रहना चाहिए और भगवान को समय पर भोग लगाए जाए।


सिर्फ 2 मिनट के लिए बंद होता है मंदिर

आदिशंकराचार्य के आदेश के मुताबिक, यह मंदिर 24 घंटे में सिर्फ 2 मिनट के लिए ही बंद किया जाता है। मंदिर को 11.58 मिनट पर बंद किया जाता है और उसे 2 मिनट बाद ही ठीक 12 बजे खोल दिया जाता है। मंदिर के पुजारी को ताले की चाबी के साथ ही कुल्हाड़ी भी दी गई है। पुजारी से कहा गया है कि अगर ताला खुलने में समय लगे तो वह कुल्हाड़ी से ताला तोड़ दे, लेकिन भगवान को भोग लगने में देरी ना हो।

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