पान के पत्तों से जुड़ी यह पौराणिक कथाएं साबित करती हैं भारत ही है इसका जनक!
भारत के शौकीन लोग पान नहीं खाएं, यह कैसे हो सकता है। दक्षिण भारत में तो थोड़ा कम लेकिन उत्तर भारत में जगह-जगह आपको पान की एक छोटी सी दुकान देखने को जरूर मिल जाएगी। पान को कुछ लोग स्वाद के लिए खाते हैं, तो कुछ दवा के रूप में खाते हैं, तो वहीं कुछ पूजा के लिए इस्तेमाल करते हैं। इस स्टोरी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि भारत ही पान का जनक क्यों हैं? आइए जानें, पान से जुड़ी रोचक पौराणिक कथाएं।
हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक, भगवान शिव और माता पार्वती ने मिलकर पान का पहला बीज बोया था। हिमालय में मौजूद एक पहाड़ पर इसका बीज बोया गया था, इसके बाद से ही पान की असली शुरूआत हुई। फिर शुरू हुआ हिन्दू रस्मों में पान के पत्तों का इस्तेमाल। पूजा-अर्चना में भी पान के पत्ते को तुलसी, दूर्वा घास और बिलवा के सामान ही जरूरी माना गया है। रामायण और महाभारत में भी पान के पत्ते के मालाओं और पूजा सामग्री में इस्तेमाल किए जाने की बात सामने आती है।
त्रेता युग में जब हनुमान जी श्रीराम का संदेश लेकर माता सीता के पास अशोक वाटिका में पहुंचते हैं। वहां हनुमान जी से संदेश पाकर मां सीता बहुत प्रसन्न होती हैं। ऐसे में वह हनुमान जी को कुछ भेंट देने के बारे में सोचती हैं। इसके बाद उनकी नजर वहां मौजूद पान के पत्तों पर पड़ती है। वह पान के पत्तों का एक माला बनाकर भगवान हनुमान को प्रदान करती हैं।
द्वापर युग की एक कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध जीतने के बाद अर्जुन ने एक यज्ञ किया था, यज्ञ के दौरान ब्राह्मण अर्जुन से पान के पत्ते लाने को कहते हैं। क्योंकि यज्ञ बिना पूजा के शुरू नहीं हो सकती थी। इसलिए अर्जुन को पान के पत्तों के लिए नागलोक जाना पड़ा था। बता दें कि अर्जुन को नागलोक की रानी से पान के पत्ते मांगने पड़े, जिसके बाद ही यज्ञ सम्पन्न हो पाया। इसी कारण पान के पत्ते को नागरबेल भी कहा जाता है।
आयुर्वेद में भी पान के पत्तों के इस्तेमाल के सबूत मिलते हैं। जाहिर है भारत में हजारों वर्षों से आयुर्वेदिक औषधि के रूप में पाने के पत्तों के इस्तेमाल की जानकारी मिलती है। सबसे पहले भगवान धन्वंतरि ने यह प्रमाणित किया था कि पान को मनुष्य भी खा सकते हैं। इसमें सबसे पहला प्रभाव जो उन्होंने देखा, वह था अच्छी पाचन शक्ति। चिकित्साशास्त्री सुश्रुत का भी मानना था कि पान खाने से आवाज़ साफ रहती है, मुंह से दुर्गंध नहीं आती और जीभ भी ठीक रहती है।
उपरोक्त सभी तथ्यों के आधार पर यह बात हम आसानी से कह सकते हैं कि पान का वास्तविक जनक भारत ही है। भारत से ही पूरे विश्व में पान का विस्तार हुआ है।