संस्कृत को देवों की भाषा कहा जाता है। हम राम चरित मानस पढ़े या गीता सभी को संस्कृत भाषा में ही लिखा गया है। इसके बाद हम इस भाषा को सामान्य रूप से स्कूल में 10 वीं तक और शादी के समय मंडप पर ही इस भाषा को सुनते है। लेकिन क्या अपने कभी पूरा एक दिन इसी भाषा को अपने आम बोल चाल में यूज किया है! आज आपको कुछ इसी तरह के रोचक तथ्य की जानकारी देते है। जहां सिर्फ एक दिन ही नहीं जन्म से अंत तक यहां पर संस्कृत ही बोली जाती है। भारत में एक नहीं कई ऐसे स्थान है जहां पर संस्कृत को अपनी मातृ भाषा माना जाता है।

कर्नाटक का मत्तूर गाँव -
कर्नाटक का मत्तूर एक छोटा सा गाँव है। यह तुंगा नदी के तट पर बसा है। यहां बड़े स्तर पर आम बोल चाल की भाषा ही संस्कृत है। इस गांव में
एक राम मंदिर, एक शिवालय, सोमेश्वरा और लक्ष्मीकेशव के मंदिर हैं। गांव के दुकानदार, मजदूर और यहां तक कि बच्चे भी इसी भाषा को बोलते है। मत्तूर नाम का ये गांव भारत के 'संस्कृत गाँव' के रूप में प्रसिद्ध है। जबकि कर्नाटक राज्य की आधिकारिक और मूल भाषा कन्नड़ है।

उड़ीसा का सासना -
उड़ीसा के गजपति जिले का एक छोटा सा सुंदर गाँव सासना है। यहां हर घर के लोग प्राचीन पंडित होने का दावा करते है। गांव में अधिकांश निवासी ब्राह्मण ही है। इस गांव में लगभग 50 घर हैं जिनमें 300 सदस्य है।
संस्कृत के पंडित 76 वर्षीय वैष्णव चरण पाटी है कि 'हमारे बुजर्गों ने यह परम्परा बनाया थी कि हर घर में कम से कम एक बच्चा संस्कृत टीचर बनेगा और सभी को ये भाषा सिखाएगा।
मध्य प्रदेश का बाघुवर -
बाघुवर बागवार गाँव मध्य प्रदेश में स्थित है। यहां संस्कृत भाषा गांव के अधिकांश लोगों द्वारा बोली जाती है। गांव में मुख्य रूप से इस भाषा को
बोली जाता है।

राजस्थान का गनोड़ा -
राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में गनोरा एक छोटा गांव है। यह उदयपुर डिवीजन के अंतर्गत भी आता है। यहां छोटे बच्चे से लेकर बड़े बुज़र्ग तक संस्कृत में ही बात करते है। जानकारी के अनुसार बताया गया कि एक दशक तक स्थानीय भाषा वागड़ी बोली जाती थी लेकिन विद्यालय स्तर पर जब संस्कृत भाषा पढ़ाई गयी तो गांव के सभी लोग इतने प्रभावित हुए कि गांव में बच्चे ही नहीं बुज़र्ग तक भी इस भाषा का उपयोग करने लगे। जिसके बाद आज तक गांव में सभी संस्कृत भाषा बोलते है।

कर्नाटक का होसहल्ली -
कर्नाटक का होसहल्ली गांव मत्तूर गांव के साथ ही शुरू हुआ था और यह गांव गामाका कला कर्नाटक संगीत का समर्थन है। यह गांव इसी
गायन और कहानी का एक अनूठा रूप है।
मध्य प्रदेश का झिरी -
झिरी नाम का ये गांव मध्य प्रदेश में राजगढ़ जिले में पड़ता है। यह बहुत ही छोटा सा गांव है इसमें केवल 976 लोगों रहते है। साल 2002 में एक संस्थान की कार्यकर्ता के माध्यम से गाँव में संस्कार शिविर का आयोजन किया था। जो एक साल तक यहां रह कर ग्रामीणों में संस्कृत भाषा के प्रति इतनी रुचि विकसित की कि गाँव का हर व्यक्ति संस्कृत सीखने लगा। जिसके बाद यहां का हर कोई व्यक्ति इस भाषा को बोलने लगा और आज छोटे बच्चे से लेकर बड़े बुज़र्ग तक संस्कृत भाषा ही बोलते है।

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