इंटरनेट डेस्क। दोस्तों आपको बता दे की हर साल श्रावण मास में लाखों की तादाद में कांवडिये सुदूर स्थानों से आकर जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव वापस लौटते हैं इस यात्राको कांवड़ यात्रा बोला जाता है।

श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है। कहने को तो ये धार्मिक आयोजन भर है, लेकिन इसके सामाजिक सरोकार भी हैं। भगवान शिव को कांवड़ चढाने के लिए कई नियमों का पालन करना पड़ता है अगर ऐसा नहीं हुआ तो कहा जाता है भगवान शिव रुष्ठ हो जाते हैं। तो दोस्तों आप भी इन नियमो के बारे में जान लीजिये।

दोस्तों आपको बता दे की इसमें नशे की सख्त मनाही है। किसी भी तरह का नशा करना वर्जित है। खाने में आप कुछ भी मांसाहारी नहीं खा सकते. जब तक यात्रा पर हैं आपको सात्विक रहना होगा।

दोस्तों आपको बता दे की कांवड़ को जमीन पर रखने की मनाही होती है, अगर कहीं भी रुकना पड़े तो कांवड़ को ऊँचे स्थान पर रखा जाता है। चमड़े से सामान से दूर रहना होगा, आपका पर्स और बेल्ट जैसी चीज़ें छूना नहीं है।

दोस्तों आपको बता दे की 'हर हर महादेव' और 'बोल बम' का नारा लगते जाना है। यात्रा को पैदल करने का विधान है जिसमें कुछ लोग नंगे पैर भी करते हैं और कुछ चप्पल पहनकर भी करते हैं।

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