महाभारत का युद्ध देखा जाए तो उस खेल में पांडवों की हार के बाद से शुरू हुआ जिसमे पांडव अपना राज पाठ सब हार गए थे। हार के बाद पांडव 12 साल के वनवास पर चले गए थे। उनके अंदर बदले की आग जल रही थी और वे कौरवों से द्रौपदी के साथ किए गए अपमान का बदला लेना चाहते थे। लेकिन वन में ऐसी घटना घटी जिसे जानकर पांडव हैरान रह गए।


जंगल में द्रौपदी को एक पेड़ पर जामुन लटके दिखाई दिए जो उसने तोड़ दिए। वे उन्हें खाने ही वाली थी तभी भगवान कृष्ण वहां पहुंच गए। उन्होंने कहा कि इन फलों से एक ब्राह्मण अपना 12 वर्षीय उपवास तोड़ने वाला था और अब तुम्हे वो श्राप दे सकता है।


इसे सुन कर द्रौपदी डर गई और उसने कृष्ण से इसका उपाय पूछा। तब कृष्ण ने बताया कि तुम सब एक एक कर के एक सच कहते जाओ तब ये फल ऊपर जाता जाएगा और किसी ने झूठ बोला तो फल ऊपर नहीं जाएगा ऐसे में उस व्यक्ति को ब्राह्मण के श्राप का शिकार होना पड़ेगा।

इसकी शुरुआत युधिष्ठिर ने की और कहा कि पांडवों के साथ जो भी बुरा हुआ है उसकी जिम्मेदार द्रौपदी है। तब फल थोड़ा ऊपर गए।

भीम ने कहा कि खाना, लड़ाई, नींद और वासना के प्रति उसकी आसक्ति कभी कम नहीं होती है। इसके आगे भीम ने कहा कि धतराष्ट्र के सभी पुत्रों को मार देंगे लेकिन युधिष्ठिर के प्रति उनके मन में काफी श्रद्धा है। लेकिन जो भी उसकी गदा का अपमान करेगा उसे वह मार देगा। इसके बाद फल और ऊपर चले गए।

अर्जुन ने कहा मैं युद्ध में कर्ण को मार नहीं दूंगा तब तक मेरे जीवन का उद्देश्य पूरा नही हो सकता। इस से फल और ऊपर चले गए।

नकुल और सहदेव ने भी ऐसे ही सच कहा और फल ऊपर बढ़ते गए। अंत में द्रौपदी ने कहा पांच पति मेरी पांच ज्ञानेन्द्रियों (आंख, कान, नाक, मुंह और शरीर) की तरह हैं। लेकिन मैं अपने दुर्भाग्य के कारण परेशान हूँ। ऐसा कहने पर फल ऊपर नहीं उठे।

इसके बाद द्रौपदी ने कहा कि मैं पाँचों पांडवों से प्यार करती हूँ लेकिन ज्यादा प्यार मैं कर्ण से करती हूँ लेकिन जाति की वजह से मेरा विवाह कर्ण से नहीं हो पाया। यह सुनकर पांचों पांडव हैरान रह गए और फल वापस जाकर पेड में लग गए।

Related News