हिंदू धर्मशास्त्रों में शिव-पार्वती, राम-सीता का नाम एक साथ इसलिए लिया जाता है कि क्योंकि इन्होंने एक दूसरे से विवाह किया था। लेकिन राधा-कृष्ण का नाम तो प्रेम की साक्षात प्रतिमूर्ति है। श्रीकृष्ण ने राधा से शादी नहीं की। श्रीकृष्ण की पत्नियों में मुख्य रूप से रुक्मिणी, सत्यभामा, जामवंती आदि का नाम आता है। इस कहानी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि रुक्मिणी भले ही श्रीकृष्ण की अति प्रिय पत्नी थीं, लेकिन राधा तो श्रीकृष्ण के रोम-रोम में बसी थीं।

कथा के मुताबिक, रुक्मिणी ने एक बार भगवान श्रीकृष्ण को दूध पीने के लिए दिया। भगवान श्रीकृष्ण को दूध-घी बहुत पसंद है, इसलिए उन्होंने एक ही बार में दूध पी लिया। लेकिन दूध इतना गर्म था कि श्रीकृष्ण के मुख से दर्द के मारे अचानक निकल पड़ा- हे राधे!

श्रीकृष्ण के मुख से राधे का नाम सुनकर रुक्मिणी ने कहा कि मैं आपसे इतना ज्यादा प्रेम करती हूं फिर आप के मुख से हमेशा राधा का नाम ही क्यों निकलता है? तब श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए रुक्मिणी से कहा कि क्या आप कभी राधा से मिली हैं? फिर क्या था, रुक्मिणी को रहा नहीं गया, एक दिन वह राधा से मिलने उनके महल तक जा पहुंची।

रुक्मिणी जैसे ही राधा के महल के पास पहुंची, तब उन्होंने एक स्त्री को देखा। वह स्त्री इतनी सुंदर थी कि रुक्मिणी ने उनके पैर छू लिए। तब स्त्री ने रुक्मिणी से कहा कि मैं तो राधा जी की दासी हूं। राधा जी से​ मिलने के लिए आपको सात द्वार पार करने होंगे। रुक्मिणी ने हर द्वार पर अति सुंदर स्त्रियां देखीं। रुक्मिणी ने राधा के कक्ष में जैसे ही कदम रखा, तब वह राधा को देखते ही रह गईं। राधा के चेहरे पर एक अजीब तेज और सुंदरता देख रुक्मिणी उनके चरणों में समर्पित हो गईं। लेकिन उन्होंने राधा के शरीर पर देखा तो उन्हें छाले दिखे।

रुक्मिणी ने अचंभित होते हुए पूछा कि आपके शरीर पर छाले कैसे पड़ गए। राधा जी ने कहा कि आपने श्रीकृष्ण को इतना ज्यादा गर्म दूध पीने को दे दिया था, कि उनके दूध पीते ही मेरे शरीर पर छाले पड़ गए। राधा ने कहा कि श्रीकृष्ण के दिल में तो मेरा ही वास है।

राधा और कृष्ण एक ही हैं, इसीलिए हर कोई राधा-कृष्ण का ही नाम लेता है। सच है, प्रेम में निस्वार्थ समर्पण और बलिदान तर्क की चीज नहीं है।

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