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हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक, पितृ पक्ष में कौओं को भोजन अर्पित करने पर पितरों को शांति मिलती है और उनकी आत्मा तृप्त होती है। पौराणिक मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में कौवे दिवंगत परिजनों के हिस्से का खाना खाते हैं, तो उनकी आत्मा तृप्त होती है।

बता दें कि बढ़ते शहरीकरण, पेड़ों की कटाई और ऊंची इमारतों के कारण प्रकृति में अब कौओं की संख्या बहुत कम हो चुकी है। पितृ दूत कहलाने वाले कौए आज नजर नहीं आते।

पुराणों में कौए को पितृ-दूत कहा गया है। मान्यता है कि यदि दिवंगत परिजनों के लिए बनाए गए भोजन को कौआ चख ले, तो पितृ तृप्त हो जाते हैं। सूर्य निकलते ही यदि घर की मुंडेर पर बैठकर यदि कौआ कांव- कांव की आवाज निकाले तो घर शुद्ध हो जाता है।

पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म के दौरान कौए का महत्व काफी बढ़ जाता है। श्राद्ध के 16 दिनों में यदि यह पक्षी घर की छत का मेहमान बन जाए, तो इसे पितरों का प्रतीक और दिवंगत अतिथि का स्वरुप माना गया है।

हिंदू धर्मशास्त्रों ने कौए को देवपुत्र माना है, यही वजह है कि हम श्राद्ध का भोजन कौओं को अर्पित करते हैं। शायद इसीलिए श्राद्ध पक्ष में जातक अपने पितरों को खुश करने के लिए बड़ी श्रद्धा से पकवान बनाकर कौओं को भोजन कराते हैं।

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