राधा रानी का नाम हमेशा कृष्ण भगवान के साथ लिया जाता था क्योकि राधा ही उनकी सबसे प्रियतम प्रेमिका थी इसलिए इनका नाम एक दूसरे से राधा-कृष्ण जुड़ा हुआ हैं, हर मंदिर में कृष्ण जी की मूर्ति के पास राधा जी की प्रतिमा भी जरूर नजर आती हैं।


कंस मामा के द्वारा श्री कृष्ण और बलराम को मथुरा आने के निमंत्रण के कारण राधा से इनकी दूरियां बनी, कहते है राधा की बढ़ती उम्र के साथ कृष्ण से दूर होने के लिए चुपके से महल से बिना मंजिल तय किये निकल गई। गुजरते समय के साथ राधा का शरीर भी अब साथ छोड़ने वाला था इसलिए ऐसी अवस्था में वह कृष्ण को याद करती हैं फिर कृष्ण उनके सामने प्रकट हो जाते हैं जिसे देखकर राधा खुश हो जाती हैं।


कृष्ण राधा से कुछ मांगने के लिए कहते हैं तब राधा कहती हैं की वह बांसुरी की मीठी धुन सुनना चाहती हैं जब कृष्णा ने बांसुरी बजाई तो इसकी सुरीली आवाज के साथ राधा ने दुनिया छोड़ दी फिर कृष्ण ने दुखी होते हुए अपनी बांसुरी को तोड़ फिकाया, राधा ने मरने के लिए कृष्ण का जिस जगह इंतजार किया था वहां पर ‘राधारानी मंदिर’ हैं जो अभी महाराष्ट्र नगरी में मौजूद हैं।

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