By Jitendra Jangid:- भारत में बेटा और बेटी को एक समान माना जाता हैं, जब भी किसी घर में बेटी पैदा होती हैं तो उसे देवी के आगमन का प्रतीक माना जाता है, वहीं बात करें बेटे के पैदा होने की तो उस वंश संचालक के रूप में माना जाता हैं, भारतीय संविधान में बेटों और बेटियों को समान अधिकार दिए गए हैं। अगर हम बात करें संपति के अधिकार की तो यह समान थी, लेकिन हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय के द्वारा लिए गए फैसले ने उन विशिष्ट शर्तों को स्पष्ट किया है, जिनके तहत एक बेटी अपने पिता की संपत्ति की हकदार नहीं हो सकती है, आइए जानते हैं इसकी पूरी डिटेल्स-

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यह फैसला एक तलाकशुदा महिला द्वारा की गई अपील से आया है, जिसके पिता की मृत्यु 1999 में हो गई थी। उसने अपनी मां और भाई के साथ विरासत के अपने अधिकार का दावा किया था।

न्यायालय का निर्णय: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि तलाकशुदा बेटी का अपने मृत पिता की संपत्ति पर दावा नहीं है, क्योंकि उसे हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम (HAMA) के तहत आश्रित नहीं माना जाता है।

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कानूनी व्याख्या: HAMA की धारा 21 केवल उन आश्रितों से संबंधित है, जो भरण-पोषण के लिए पात्र हैं। चूंकि अपीलकर्ता तलाकशुदा थी और अपने पिता की मृत्यु के समय उसे भरण-पोषण नहीं मिल रहा था, इसलिए उसे विरासत के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया।

भरण-पोषण समझौते: सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसके परिवार ने उसे 2014 तक मासिक भरण-पोषण प्रदान किया था। अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पिछले वित्तीय समर्थन के बावजूद, उसकी वर्तमान स्थिति उसे आश्रित के रूप में योग्य नहीं बनाती।

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यह निर्णय भारत में संपत्ति के अधिकारों और भरण-पोषण के दावों की जटिलताओं को रेखांकित करता है, विशेष रूप से तलाक के संदर्भ में।

यह निर्णय महिलाओं के संपत्ति के अधिकारों से संबंधित भविष्य के मामलों को प्रभावित कर सकता है, विशेष रूप से तलाकशुदा व्यक्तियों के संबंध में।

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