इस साल पितृ पक्ष 10 सितंबर शनिवार से शुरू हो चूका है। पितृपक्ष में पितरों की आत्मसंतुष्टि के लिए श्रद्धापूर्वक जो कुछ भी किया जाता है, उसे श्राद्ध कहते हैं। श्रद्धा का अर्थ है विश्वास। इस वर्ष पितरों का श्राद्ध कर्म 10 सितंबर से 25 सितंबर तक रहेगा। श्राद्ध पितरों की तिथि के अनुसार किया जाता है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि श्राद्ध किस को करना चाहिए पुरुषों को या महिलाओं को? आज हम इसका जवाब आपको बताने जा रहे हैं।

श्राद्ध क्या है?

ऋषि पाराशर ने कहा है कि जौ, काले तिल, कुश आदि का जाप करके स्थान और परिस्थितियों के अनुसार जो भी कर्म भक्तिपूर्वक किया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध से पितरों की प्रसन्नता होने पर वे अपने वंशजों को सुख, समृद्धि, संतान आदि का आशीर्वाद देते हैं।

क्या महिलाएं दान करती हैं?

गरुड़ पुराण के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति के पुत्र नहीं हैं, तो ऐसे में परिवार की महिलाएं अपने पिता के श्राद्ध और पिंड का दान कर सकती हैं। ऐसी स्थिति में पुत्री, पत्नी और बहू पिता का श्राद्ध कर सकते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार यदि कोई पुत्री सच्चे मन से अपने पिता का श्राद्ध करती है तो पुत्र के न होने पर पिता उसे स्वीकार कर आशीर्वाद देता है।

महिलाओं को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए

श्राद्ध करते समय महिलाओं को सफेद और पीले रंग के कपड़े पहनने चाहिए। धार्मिक मान्यता के अनुसार केवल विवाहित महिलाओं को ही श्राद्ध करना चाहिए। कुश, जल और काले तिल डालकर तर्पण नहीं करना चाहिए। श्राद्ध तिथि याद न हो तो नवमी को वृद्ध स्त्री-पुरुषों का तथा पंचमी को संतान का श्राद्ध करें।

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