दोस्तों, रामायण में यह कथा आती है कि सीता हरण के बाद लंका के राजा रावण पर आक्रमण करने के लिए भगवान श्रीराम ने अपनी विशाल वानर सेना की सहायता से समुद्र पर पुल यानि सेतु का निर्माण किया था। इसी पुल के जरिए श्रीराम की सेना समुद्र पार कर लंका की धरती पर पहुंची थी, जिससे लंकाधिपति रावण सहित समस्त राक्षसी सेना का विनाश संभव हुआ था।

दोस्तों, विज्ञान आज इतना आगे बढ़ चुका है, फिर भी समुद्र पर पुल बांधने जैसा महान कार्य किसी भी शक्तिशाली देश के द्वारा आज तक संभव नहीं हो सका है। भारत ही नहीं दुनिया के अधिकांश लोग यह बात सोचकर चकित हो जाते हैं कि आखिर हजारों वर्ष पहले श्रीराम ने समुद्र पर सेतु कैसे बांध दिया।

जो लोग इसे हमेशा कपोल कल्पना मानते रहे, अब उनकी भी बोलती बंद हो चुकी है। क्योंकि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ अन्तरिक्ष अनुसंधान संस्थान नासा की ओर से उपग्रह से खींचे गए चित्रों में भारत के दक्षिण में धनुषकोटि तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिम में पम्बन के मध्य समुद्र में 48 किमी चौड़ी पट्टी के रूप में उभरे एक भू-भाग की रेखा दिखती है। उसे आज रामसेतु या राम का पुल माना जाता है। आइए जानें, श्रीराम सेतु से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।

- सदियों पहले समुद्र पर बना श्रीराम सेतु आज भी मौजूद है। लेकिन यह समुद्रतल में काफी नीचे है। इस पुल को रामसेतु कहा जाता है।

- श्रीराम सेतु भौतिक रूप से उत्तर में बंगाल की खाड़ी तथा दक्षिण में शांत और स्वच्छ पानी वाली मन्नार की खाड़ी से (मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरूमध्य को) अलग करता है

- रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच उथली चट्टानों की एक चेन है। इस इलाके में समुद्र बेहद उथला है। बता दें कि समुद्र में इन चट्टानों की गहराई सिर्फ़ 3 फुट से लेकर 30 फुट के बीच है।

- भारत में इसे श्रीराम सेतु तथा विश्व में एडम्स ब्रिज के नाम से जाना जाता है। इस पुल की लंबाई लगभग 48 किमी है।

- वाल्मीकि रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि रामसेतु पुल को श्रीराम के निर्देशन में कोरल चट्टानों और रीफ से बनाया गया था।

- श्रीराम सेतु का उल्लेख रामायण, रामचरित मानस, स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, ब्रह्म पुराण तथा कालीदास के रघुवंश नामक महाकाव्य में मिलता है।

- प्राचीन वास्तुकारों ने श्रीराम सेतु में कम से कम घनत्व तथा छोटे पत्थरों और चट्टानों का उपयोग किया, जिससे आसानी से एक लंबा पुल निर्माण किया जा सका। इसे इतना मजबूत बनाया गया कि मनुष्यों व समुद्र के दबाव को भी सह सके।

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