यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि सिखों के पहले गुरू नानक देव जी ने दक्षिण भारत की भी यात्रा की थी। दक्षिण भारत में कर्नाटक के बीदर शहर में आज भी वो ऐतिहासिक गुरुद्वारा स्थित है, जो नानक झीरा साहिब के नाम से विख्यात है। इस स्टोरी में हम आपको नानक झीरा साहिब से जुड़ी रोमांचक और दिलचस्प बातें बताने जा रहे हैं। बता दें कि 1510-1514 ई. में गुरु नानक देव जी ने बीदर में कुछ समय तक प्रवास किया था। इस दौरान उन्होंने स्थानीय लोगों के बीच पानी की गंभीर समस्या को सुलझाया था।

कथा के मुताबिक, गुरु नानक देव जी के साथ यात्रा के दौरान भाई मर्दाना भी साथ में थे। बीदर में उस वक्त कई मुस्लिम संत भी रहते थे। जब उन्हें नानक देव जी के आने की सूचना मिली तो वे सभी गुरु जी के स्वागत के लिए दौड़ पड़े। कुछ ही देर में गुरू नानक देव जी के आसपास हजारों लोग एकत्र हो गए और पानी की समस्या बताने लगे। कर्नाटक की राजधानी बैंगलूरु से लगभग 700 किलोमीटर दूर उत्तर में स्थित बीदर में पंज प्यारों में शामिल भाई साहिब सिंह जी का जन्म हुआ था। भाई साहिब सिंह जी ने चमकौर साहिब की लड़ाई में अपना बलिदान देकर खालसा पंथ को मजबूती दी।
आपको जानकारी के लिए बता दें कि दक्षिण भारत की यात्रा के दौरान नानक देव जी सबसे पहले बीदर पहुंचे तथा वहां कुछ मुस्लिम संतों से मिलने की इच्छा जताई। इसके बाद नानक देव जी ने नागपुर और खांडवा में भी कुछ दिन व्यतीत किए। यहां कुछ दिन गुजारने के बाद वह नरबादा के प्राचीन हिंदू मंदिर ओंकारेश्वर पहुंचे और वहां से होते हुए नांदेड़ में रूके। नांदेड़ में जिस जगह पर गुरू नानक देव जी रूके थे, उसी के पास 200 साल बाद गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना आखिरी समय बिताया था। नांदेड़ में ही गुरुद्वारा तख्त श्री हजूर साहिब स्थित है।

नांदेड़ के बाद नानक जी हैदराबाद और गोलकुंडा पहुंचे। जब गुरूनानक जी बीदर पहुंचे तो वहां उनका जोरदार स्वागत किया गया। बीदर में उन्होंने बाहरी इलाके में ही रूकना उचित समझा। बीदर में नानक देव जी का आशीर्वाद लेने के लिए कुछ ही देर में बड़ी संख्या में लोग इकट्ठे हो गए। लोगों ने नानक देव जी को बताया कि यहां पीने के लिए बिल्कुल भी पानी नहीं है। कुएं खोदने के बावजूद भी पानी नहीं मिला। लोगों की बातें सुनकर गुरू नानक देव जी बहुत दुखी हुए। उन्होंने लोगों की समस्या सुनकर सभी को आश्वासन दिया कि जल्द ही इस मसले को सुलझा लिया जाएगा।
लोगों की बातें सुनने के बाद नानक देव जी अपने स्थान से उठे और इधर-उधर अपने पैर से कुछ टटोलते हुए परमात्मा का नाम लेने लगे। मानाे जैसे वह कुछ खंगाल रहे हों। इसी खोज में वह एक पहाड़ी के पास पहुंच गए। उन्होने परमात्मा का नाम लेते हुए पहाड़ी के कोने को अपने पैर के अंगूठे से छुआ। ऐसा करते ही उस जगह से मीठे पानी का झरना फूट निकला।

इस चमत्कार को देखकर सभी लोग विस्मृत हो गए। पानी इतना मीठा था कि इससे पहले वहां के लोगों ने इस कदर मीठा पानी कभी नहीं पिया था। तब से इस जगह का नाम नानक झीरा पड़ गया। बाद में इस जगह एक एक गुरुद्वारा का निर्माण कर दिया गया। गुरुद्वारा नानक झीरा को उसी जगह बनाया गया है, जहां गुरु साहिब रुके थे। आज भी यहां से पानी का प्रवाह होता रहता है, अब इस जगह को अमृत कुंड का नाम दिया गया है। लोग अमृत कुंड का जल पीते हैं और घर भी ले आते हैं। अमृत कुंड के ठीक सामने एक पवित्र सरोवर भी बनाया गया है, जहां संगतें स्नान करती हैं। विशेष मौकों पर एक दिन में नानक झीरा में 30,000 तक संगतें आती हैं और गुरु साहिब के सामने नतमस्तक होती हैं। श्री नानक झीरा गुरुद्वारे में प्रबंध कमेटी की तरफ से स्थानीय लोगों के लिए अस्पताल, इंजीनियरिंग कॉलेज, पोलिटेक्निक और दो स्कूल खोले गए हैं।

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