मुहम्मदी खातून का जन्म 1820 में अवध प्रांत के फैजाबाद जिले में हुआ था। उनके माता पिता ने अपनी इस बेटी को अवध प्रांत के शाही हरम में बेच दिया। बहुत ज्यादा खूबसूरत होने के चलते शाही दलाल उन्हें परी कहने लगे, बाद में वह महक परी पुकारी जाने लगीं।

जब अवध के नवाब वाजिद अली शाह की नजर महक परी पर पड़ी तो उन्होंने इन्हें अपनी बेगम बना लिया। महक परी ने एक पुत्र बिरजिस कादिर को जन्म दिया। उन दिनों पूरे अवध प्रांत में वह बेगम हज़रत महल के नाम से विख्यात हो चुकी थीं।

1857 में ब्रिटीश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अवध पर अधिकार कर नवाब वाजिद अली शाह को कोलकाता भेज दिया, अवध को हड़पने की कोशिश की। लेकिन बेगम हजरत महल ने अपने नाबालिग पुत्र बिरजिस कादर को अवध का उत्तराधिकारी घोषित कर अग्रेंजी सेना जमकर लोहा लिया।

बेगम हजरत महल ने 1857-58 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय राजा जयलाल सिंह के साथ मिलकर लखनऊ पर अधिकार कर लिया और वहां से अंग्रेजों को खदेड़ दिया। इसके बाद ब्रिटीश ईस्ट इंडिया की सेना ने दोबारा आक्रमण किया, इस बार लखनऊ और अवध के अधिकांश हिस्सों पर कब्जा कर लिया।

ऐसे में बेगम हजरत महल को नेपाल में शरण लेनी पड़ी। अवध पर अग्रेंजी सेना ने कब्जा कर लिया। बेगम हजरत महल ने अपना पूरा जीवन नेपाल में ही व्यतीत किया। जहां 1879 ई. में उनकी मौत हो गई। बेगम हजरत महल को काठमांडू के जामा मस्जिद के मैदान में दफन किया गया।

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