कश्मीर घाटी में हर तरफ सिर्फ पहाड़ और खूबसूरत वादियां ही नजर आती हैं। घाटी की इन खूबसूरत वादियों का दीदार करने के लिए पूरी दुनिया से लोग यहां पहुंचते हैं। कश्मीर घाटी को धरती का जन्नत यूं ही नहीं कहा गया है। श्रीनगर की मन मोह लेने वाली इन वादियों में आज की तरह गोलियों की गड़गड़ाहट नहीं, बल्कि लोगों के क़हक़हे गूंजते थे। फ़िज़ां में रंगीनियां थीं। एक दौर ऐसा भी था, जब कश्मीर की लड़कियां मर्दों के कंधे से कंधा मिलाकर चलती थीं।

आज महाशिवरात्रि का पर्व है, तो हम आपको श्रीनगर में मौजूद भोलेनाथ के उस अति प्राचीन मंदिर के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं, जो पर्यटकों के लिए आस्था का केंद्र है। जम्मू कश्मीर आने वाले पर्यटक इस शिव मंदिर का दर्शन किए बगैर वापस नहीं लौटते हैं। श्रीनगर के डल झील के पास भोलेनाथ के शंकराचार्य मंदिर का इतिहास करीब 2000 वर्ष पुराना है। समुद्र की सतह से करीब 1100 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर कश्मीरियों में तख्त-ए-सुलेमन के नाम से जाना जाता है।

हांलाकि यह मंदिर घाटी के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस शिव मंदिर का निर्माण 371 ई. पूर्व राजा गोपादित्य ने करवाया था। बाद में कश्मीर के महाराजा गुलाब सिंह ने मंदिर की सीढ़ियों का निर्माण करवाया था। इस मंदिर की वास्तुकला दिव्य है। हिंदूओं में यह मान्यता है कि भारत यात्रा के दौरान जगदगुरु शंकराचार्य इस जगह आए थे। इसीलिए इस मंदिर को शंकराचार्य मंदिर भी कहा जाता है। इस शिव मंदिर में जगदगुरु शंकराचार्य का साधना स्थल आज भी मौजूद है।

शंकराचार्य मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 200 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। इस मंदिर से श्रीनगर की खूबसूरत घाटी का नजारा देखते ही बनता है। इस मंदिर की ऊंचाई से मशहूर डल झील की रौनक स्पष्ट नजर आती है। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि जगदगुरु शंकराचार्य भगवान शिव के अवतार थे। उनके पिता शिवगुरु नामपुद्री और उनकी पत्नी विशिष्टा देवी को विवाह के कई वर्षों तक कोई संतान नहीं हुई। संतान की चाह में इस विद्वान दंपति ने भगवान शिव की घोर आराधना की।

इनकी शिव आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने स्वयं ही पुत्र रूप में उनके घर जन्म लेने का वरदान दिया। इसलिए शिशु के जन्म लेने के बाद माता पिता ने उनका नाम शंकर रखा। जो आगे चलकर जगदगुरु शंकराचार्य कहलाए।
गौरतलब है कि घाटी में आतंकी गति​विधियों को देखते हुए शंकराचार्य मंदिर के आस-पास सुरक्षा व्यवस्था के व्यापक इंतजाम किए गए हैं। इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था से गुजरना पड़ता है। सुरक्षा के दृष्टिकोण से इस मंदिर के किसी भी श्रद्धालु को तस्वीर लेने की इजाजत नहीं है।

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