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महाभारत में द्रौपदी चीरहरण को सबसे अधिक निंदनीय घटनाओं में माना जाता है। ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर क्यों युधिष्ठिर ने भाइयों को हारने के बाद भी अपनी पत्नी द्रौपदी को दांव पर लगा दिया था।

आपको बता दें कि युधिष्ठिर ने सबसे पहले संपत्ति दांव पर लगाईं लेकिन दुर्योधन की विजय हुई क्योकि पासे दुर्योधन के पक्ष में थे। इस से युधिष्ठिर अपनी संपत्ति हार गए।

हार के बाद युधिष्ठिर ने अपनी कई कीमती चीजें दांव पर लगाई लेकिन एक एक कर के वे सब कुछ हारते गए। इसके बाद युधिष्ठिर और बाकी पांडव अपने सभी आभूषण और मुकुट भी हार बैठे।

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अंत में युधिष्ठिर के पास दांव पर लगाने के लिए कुछ नहीं बचा, तो शकुनि ने उन्हें अपने भाइयों को दांव पर लगाने का सुझाव दिया। युधिष्ठिर ने अपने भाईयों को दांव पर लगाया और वे भीम और अर्जुन को भी इस खेल में हार गए।

शकुनि ने झूठी संवेदनशीलता दिखाई और युधिष्ठिर को समझाते हुए कहा कि पत्नी द्रौपदी भी बची हुई है। उन्होंने कहा कि अगर तुम जीत गए तो सब कुछ वापस मिल जाएगा।

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युधिष्ठिर के सामने उन्होंने शर्त रखते हुए कहा कि पासे के अंक युधिष्ठिर की इच्छा के अनुसार आते हैं तो दुर्योधन युधिष्ठिर को राज-काज, सम्पत्ति, कीमती चीजें, भाई और उनकी पत्नी को भी वापस कर देंगे।

ऐसा करने से युधिष्ठिर ने द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया। इसके बाद ये अनर्थ हुआ और महाभरत की रचना हुई।

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