रामायण के प्रमुख पात्रों में कुंभकरण का नाम भी आता है। रामायण के मुताबिक कुंभकरण छह महीने सोता था। कथा के मुताबिक साल में 6 महीने सोने का वरदान तपस्या के जरिए कुंभकरण ने ब्रह्मा जी से प्राप्त किया था। ब्रह्मा जी ने कुंभकरण की यह मांग मान ली थी और उसे साल में 6 महीने सोने का वरदान दे दिया। जी हां, सभी लोग बचपन से यही कहानी सुनते आए हैं। लेकिन शोधकर्ता कुंभकरण को लेकर सवाल उठाने लगे हैं। शोधकर्ताओं का पहला सवाल यह है कि जो व्यक्ति घोर तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर सकता है, वो 6 महीने निष्क्रिय रहकर सोने का वरदान क्यों मांगेंगा।

शोधकर्ता यह तर्क वास्तव में अकाट्य हैं। कहा जाता है कि राक्षसराज रावण अपने समय का महाज्ञानी पंडित था। रामायण कथा का अध्ययन करने पर पता चलता है कि रावण के परिवार में हर शख्स किसी न किसी विषय में पारंगत थे। ऐसे में यह कहना कि कुंभकरण आलसी और प्रमादी था, यह ना ही उचित है और ना ही तर्क संगत।
नए शोधों से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि कुंभकरण एक वास्तव में एक वैज्ञानिक था, जो बड़े प्रयोगों पर काम कर रहा था। अपने शोध के लिए वह अनजान जगह पर प्रयोगशाला बना रखी थी, जहां वह साल के 6 महीने बिताया करता था। इस दौरान वह जनता की नजरों से ओझल रहता था।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, कुंभकरण की प्रयोगशाला किष्किंधा के दक्षिण में किसी गुफा में थी। इसी स्थान पर लंका के सबसे महत्वपूर्ण शोधों का अंजाम दिया जाता था। मान्यता है कि रावण द्वारा प्रयोग किए जाने वाले कई दिव्यास्त्र को कुंभकरण ने ही विकसित किया था। इतना ही नहीं कुंभकरण ने कई तरह के विमानों का भी निर्माण किया था।कुछ सिद्धांतकारों का यहां तक मानना है कि कुंभकरण का असली ठिकाना लैटिन अमेरिका के किसी देश में था, जहां से आने जाने के लिए वह स्वयं के द्वारा विकसित विमान का इस्तेमाल करता था। गौरतलब है कि यह सारी अटकलें अभी सैद्धांतिक हीं हैं। शोधकर्ता इन सिद्धांतों को प्रमाणित करने वाले भौतिक साक्ष्य की तलाश में जुटे हैं।

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