जानिए चाण्कय निती के अनुसार क्यू है श्रेष्ठ दान करने वाले व्यक्ति
आचार्य चाणक्य एक महान अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ और समाजशास्त्री थे।आचार्य एक राजनीतिज्ञ के अलावा एक समाजशास्त्री भी माने जाते हैं, क्योंकि वे आजीवन लोगों की मदद भी करते रहे।इतना ही नहीं उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में लोगों को धर्म का मार्ग भी दिखाया।इस दौरान उन्होंने एक ऐसे ग्रंथ की, जिसमें जीवन को सुखी बनाने के लिए कई अहम बातों का जिक्र किया गया।इस ग्रंथ को आज चाणक्य नीति के नाम से जाना जाता है,इसके जरिए जीवन में आए उतार-चढ़ाव को आसानी से पार किया जा सकता है। इन नीतियों के आधार पर आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त को सम्राट बनाया था।
आज भी आचार्य चाणक्य की नीतियां प्रासंगिक हैं।आज भी युवा इन नीतियों का पालन जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए करते हैं।नीति शास्त्र में आचार्य चाणक्य ने लगभग हर क्षेत्र के बारे में जिक्र किया है।इन नीतियों का पालन करके व्यक्ति जीवन में बड़ी से बड़ी समस्या को आसानी से हल कर सकता है।आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र में दान के बारे में भी विस्तार से बताया है।आइए जानें आचार्य चाणक्य के अनुसार दान करने वाला श्रेष्ठ क्यों माना जाता है।
दानेन पाणिर्न तु कङ्कणेन स्नानेन शुद्धिर्न तु चन्दनेन ।
मानेन तृप्तिर्न तु भोजनेन ज्ञानेन मुक्तिर्न तु मण्डनेन ।।इस श्लोक के अनुसार व्यक्ति को कभी दान से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए।इस श्लोक के अनुसार दान करने वाले हाथों की सुंदरता कंगन पहनने वाले हाथों से भी अधिक होती है।स्वस्थ रहने के लिए स्नान और शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए,शरीर तब शुद्ध माना जाता है जब स्नान किया जाए न की तब जब शरीर पर चंदन लगाया जाए।तृप्ति मान-सम्मान से मिलती है, भोजन करने से नहीं, मोक्ष की प्राप्ति श्रृंगार से नहीं ज्ञान से मिलती है।इसलिए ज्ञान का साथ व्यक्ति से कभी अलग नहीं होना चाहिए।व्यक्ति को मान-सम्मान उसके व्यवहार से मिलता है।