जानिए कहां है वो स्थान जहां से पांडवों ने सशरीर की थी स्वर्ग की यात्रा !
आज तक आपने ये सुना होगा कि स्वर्ग की यात्रा केवल तभी की जा सकती है जब मृत्यु हो जाती है और सशरीर स्वर्ग की यात्रा नहीं की जा सकती है। लेकिन ऐसी जगह है और पांडवों ने इस जगह की यात्रा की थी। मान्यता है कि द्वापरयुग में इसी स्थान से पांडवों और द्रौपदी ने अपना सारा राज पाठ त्याग करने के बाद सशरीर स्वर्ग की यात्रा शुरू की थी। इस यात्रा में सिर्फ ज्येष्ठ पांडव धर्मराज युधिष्ठिर ही सफल हो पाए थे। अन्य भाइयों और द्रौपदी ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया था। धर्मराज युधिष्ठिर का अंत तक एक श्वान ने साथ दिया था और फिर श्वान और युधिष्ठिर ने पुष्पक विमान से सशरीर स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया था।
हम जिस स्थान की बात कर रहे हैं वो उत्तराखंड में बदरीनाथ धाम के पास मौजूद है। इसे स्वर्गारोहिणी के नाम से जाना जाता है। समुद्रतल से करीब 15000 फीट की ऊंचाई पर स्थित स्वर्गारोहिणी बेहद ही सुंदर है और यहाँ पर आपको एक से बढ़ कर एक आकर्षक नजारे देहने को मिलेंगे। एक बार व्यक्ति वहां पहुंच जाए, तो उसका वापस लौटने का मन नहीं करता। ये पूरे वर्ष बर्फ से ढका रहता है। यहाँ जाने का सबसे उपर्युक्त समय मई से अक्टूबर के बीच माना जाता है। कहा जाता है कि आज भी इंसानों का साथ देने के लिए श्वान आ जाते हैं। ये कहाँ से आते हैं ये बात किसी को नहीं पता।
बेहद कठिन है ये यात्रा
स्वर्गारोहिणी की यात्रा बेहद ही कठिन है। बद्रीनाथ से करीब 28 किमी की इस यात्रा के दौरान आपके सामने कई कठिनाइयां आएगी। यात्रा के दौरान बद्रीनाथ से 3 किमी दूर माणा गांव तक की दूरी को वाहन से तय किया जा सकता है, लेकिन इसके बाद व्यक्ति को पैदल ही 25 किमी की यात्रा तय करनी होती है। इस बीच जंगल ‘लक्ष्मी वन’ भी पार करना होता है। ये भी माना जाता है कि भगवान नारायण की तपस्या के दौरान बेर का वृक्ष बनकर छांव करने पर लक्ष्मी को इस वन में ही निवास करने का वरदान मिला था।
पुण्यदायी मानी जाती है झील की परिक्रमा
माना जाता है कि पांडवों ने स्वर्ग की यात्रा आरंभ करने से पहले सतोपंथ झील में स्नान किया था। यहीं से अलकनंदा नदी निकलती है। इस झील की लोग परिक्रमा भी करते हैं, इस से पुण्य मिलता है। सतोपंथ झील से चार किमी खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद स्वर्गारोहिणी के दर्शन हो पाते हैं। इस यात्रा में 3 से 4 दिन का समय लगता है। इस दौरान रास्ते में मौजूद गुफाओं में रात्रि विश्राम करना होता है। वहीं पर्यटकों को अपने साथ टेंट और खाने का सामान ले जाना पड़ता है।