Offbeat: पटियाला का महाराजा जिसकी थी 365 रानियां, हर रानी को लालटेन से करते थे संतुष्ट
जब भारत देश आजाद नहीं हुआ था तब भारत में 720 रियासते थी। सभी रियासतों पर किसी न किसी राजा का हक हुआ करता था। इसके बाद जब भारत आजाद हुआ तोसभी रियासतें एक हो गई। इनमें से एक महाराजा ऐसे भी हुए जिनके 365 रानियां थी और वे अपनी रंगीन मिजाजी के लिये काफी प्रसिद्ध थे। हम बात कर रहे हैं पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के दादा महाराजा भूपिंदर सिहं की।
365 रानियों के साथ रहते थे महाराजा
पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिहं बेहद ही ऐशों आराम वाली जिंदगी जीते थे और 17 करोड़ रुपये के डिनर सेट में खाना खाते थे। जहाँ एक डायमंड की कीमत भी लाखों में होती है। वहीं वे 2,930 डायमंड्स से जड़ा हुआ हार पहना करते थे, जिसकी कीमत आज 25 मिलियन डॉलर (166 करोड़) है। उनका जन्म 12 अक्टूबर 1891 को पटियाला के मोती बाग में हुआ था। उनकी रंगीन मिजाजी का जिक्र महाराजा के दीवान जरमनी दास की किताब ‘महाराजा’ में हुआ है।
नग्न अवस्था में मिलता था प्रवेश
दीवान जरमनी दास की किताब ‘महाराजा’ में महाराजा भूपिंदर सिहं की रंगीन मिजाजी के कई किस्सों का जिक्र है। उन्होंने अपनीअय्याशी को दिखाने के लिये एक नया अड्डा बनवाया था जिसका नाम था ‘लीलाभवन’ जो पटना में स्थित है। इसमें लोग निर्वस्त्र हो कर ही प्रवेश करते थे। .यहां की दीवारों पर कामसूत्र और उत्तेजक चित्रकारी बनी थी। यहां एक स्वीमिंग पूल भी था जहां पर एक बार में 150 मर्द और महिलाएं स्नान कर सकती थी।
365 रानियों को रखते थे संतुष्ट
जरमनी दास ने अपनी किताब में लिखा है कि महाराजा भूपिंदर सिहं की 365 रानियां थी। राजा 365 रानियों को संतुष्ट करने के लिए 365 लालटेन जलवाते थे। सभी लालटेनों पर उनकी 365 रानियों के नाम लिखे होते थे। जो लालटेन सुबह पहले बुझती थी महाराजा उस लालटेन पर लिखे रानी के नाम को पढ़ते थे और फिर उसी के साथ रात गुजारते थे। महाराजा भूपिंदर सिंह की 10 अधिकृत रानियों से 83 बच्चे पैदा हुए लेकिन 53 ही जिंदा रह पाए।
‘रणजी ट्राफी’ की शुरुआत
भारत में क्रिकेट को बढ़ावा देने का श्रेय भी महाराजा भूपिंदर सिंह को जाता है। साल 1911 में वह अपनी क्रिकेट टीम को इंग्लैंड ले गये थे मैच खिलवाने के लिये। वे वहां पर इंग्लैंड के कोच से भी बेहद प्रभावित हुए। भारत वापस आते वक्त वह इंग्लैंड कोच को अपने साथ ले आए. उन्होंने ही मुंबई और अमृतसर में 2 स्टेडियम बनवाएं। महाराजा ने ही राजकुमार रणजीत सिहं को श्रद्धाजंलि देने के लिए ‘रणजी ट्राफी’ की शुरुआत की थी।