छत्रपति शिवाजी महाराज के दोस्ता और आजीवन साथी तानाजी का पूरा नाम तानाजी मालुसेर था। तानाजी मालुसरे मराठा साम्राज्य के सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं में से एक थे। तानाजी मालुसरे ने छत्रपति शिवाजी के साथ कई युद्ध लड़े थे।
साल 1670 में सिंहगढ़ किले को अकेले जीतने वाले तानाजी मालसुरे विशेष रूप से याद किए जाते हैं। शिवाजी महाराज ने कोंडाणा किले को अपने अधिकार में लेने के लिए एक विशेष योजना बनाई।

इस अभियान का प्रभारी तानाजी मालुसेर को चुना गया। कोंडाणा किला बहुत ही रणनीतिक स्थान पर स्थित था, इसलिए इस किले पर कब्जा करना शिवाजी के बहुत जरूरी हो गया था। तानाजी मालुसरे ने 300 सैनिकों की टुकड़ी लेकर घनी रात में घोरपड़ नामक एक सरीसृप की मदद से खड़ी चट्टान पर चढ़ने का फैसला किया। यह एक ऐसा सरीसृप जीव है, जिसकी पूंछ में रस्सी बांधकर योद्धा किले की दीवारों पर चढ़ जाते थे। इस प्रकार घोरपड़ की मदद से तानाजी मालसुरे और उसके 300 योद्धा कोंडाणा किले पर चुपचाप चढ़ गए। इसके बाद कल्याण दरवाजा खोलने के बाद मुग़लों पर हमला कर दिया।

इस किले की रखवाली का जिम्मा जयपुर के राजा जयसिंह द्वारा नियुक्त सरदार उदयभान सिंह राठौड़ के पास था। उदय भान के नेतृत्व में करीब 5000 मुग़ल सैनिक किले की रक्षा कर रहे थे। तानाजी और उदयभान के बीच भयंकर युद्ध हुआ। तानाजी मालसुरे ने एक शेर की तरह युद्ध किया। ढाल टूटने के बावजूद तानाजी मालसुरे ने उदयभान से युद्ध करना जारी रखा। अंत तानाजी मालसुरे युद्ध में बुरे तरह घायल हो गए और युद्ध के मैदान में अपने प्राण त्याग दिए, लेकिन इससे पहले तानाजी ने यह किला जीत लिया था।

किला जीतने की खबर सुनाने आए सैनिक से जब छत्रपति शिवाजी ने पूछा कि तानाजी मालसुरे कैसे हैं। तब उसने कहा- महाराज! गढ़ आला पण सिंह गेला अर्थात किला तो जीत लिया लेकिन शेर चला गया।
तानाजी मालसुरे के निधन पर छत्रपति शिवाजी को बहुत दुख हुआ था। शिवाजी ने तानाजी मालसुरे के सम्मान में कोंडाणा किले का नाम बदलकर सिंहगढ़ रख दिया। उस वीर योद्धा तानाजी मालसुरे को कोटि कोटि प्रणाम।

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