आज के दौर में दान को महत्व दिया जाता है, कहते है दान पुण्य करने से जीवन सुखमय होता है, सनातन धर्म में पांच प्रकार के दान वर्णित हैं,विद्या, भूमि, कन्या, गौ और अन्न दान सदैव योग्य को ही किया जाना चाहिए।

विद्या दान: विद्या दान गुरु वरिष्ठ सलाहकार योग्य और जरूरतमंद को प्रदान करता है। विद्या से गुण बढ़ते हैं. विनय विवेक आते हैं. समाज और विश्व का कल्याण होता है। भारतीय संस्कृति में सदियों से गुरु-शिष्य परंपरा में विद्या दान उत्तरोत्तर बढ़ा है।

भूमि दान: भूमि दान पुरातन काल में राजाओं द्वारा योग्य और श्रेष्ठ लोगों को किया जाता था, आज भी इस दान का महत्व है, विभिन्न आश्रम, विद्यालय, भवन इत्यादि इस में आते हैं।

गौदान: गौदान पशुधन का दान है, इसे चल संपत्ति अर्थात् मुद्रा दान भी स्वीकारा जा सकता है। सनातन संस्कृति में गौ दान को विशेष महत्व दिया है।

अन्न दान: अन्न दान भोजन की महत्ता का परिचायक है, सभी वर्गों में यह प्रचलित है। प्राचीन काल से समस्त खाद्य सामग्रियां इसमें समाहित हैं। योग्य लोगों के अतिरिक्त भिक्षावृत्ति पर जीवित लोगों को यह दान किया जाता है।

कन्या दान: कन्या दान पाणिग्रहण संस्कार है, धार्मिक सामाजिक पैतृक एवं मातृ परंपराओं के सुचारू संचालन के लिए कन्या का पिता योग्य वर की तलाश करता है,कन्या को उसे सौंपने का संकल्प ले वह दान को पूर्ण करता है, दान सनातन परंपरा में सर्वाेत्तम माना गया है।

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