श्रीराम और श्रीकृष्ण सहित इन 5 देवताओं की किस तरह हुई थी मृत्यु ?
संसार में सब कुछ नश्वर है। यह सार्वभौमिक सत्य है कि धरती पर जिसने भी जन्म लिया है, उसकी मृत्यु भी अवश्य होगी। जन्म और मृत्यु के इस शक्तिशाली चक्र से देवता भी नहीं बच सके। मनुष्य और देवता में यह बड़ा अंतर है कि देवों के लिए मृत्यु शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि इनके लिए देवलोक गमन कहना बेहतर होगा।
हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, इन देवताओं में से किसी ने जल समाधि ली तो किसी ने तीर लगने की वजह से अपना शरीर त्यागा। इस स्टोरी में आज हम आपको उन 5 देव पुरुषों की मृत्यु से जड़ी रोचक बातें बताने जा रहे हैं, जो काफी रोचक है।
1- लक्ष्मण
लक्ष्मण जी ने अपना पूरा जीवन अपने बड़े भाई श्रीराम की सेवा में ही अर्पित कर दिया। आपको जानकर यह हैरान होगी, श्रीराम की प्रतिज्ञा निभाने के लिए लक्ष्मण ने अपने प्राण त्याग दिए थे। एक बार स्वयं काल देवता एक ऋषि का रूप धारण करके श्रीराम से मिलने अयोध्या पहुंचे। दरअसल काल देवता प्रभु श्रीराम के लिए यह संदेश लेकर आए थे कि अब धरती पर उनका समय पूरा हो चुका है, सभी देवगण श्रीराम को विष्णु रूप में क्षीरसागर में देखना चाहते हैं।
इसके लिए काल देवता ने कहा कि श्रीराम से कहा कि वह उनसे अकेले में वार्ता करना चाहते हैं, इस दौरान कोई उन्हें वार्ता करते हुए देख ले अथवा सुन ले तो वे उस इंसान को प्राणदंड देंगे। भगवान श्रीराम और काल देवता के बीच वार्ता चल ही रही थी, तभी महर्षि दुर्वासा आ गए। उन्होंने कहा कि वह प्रभु श्रीराम से भेंट करना चाहते है। तब द्वारपाल की जगह पहरा दे रहे लक्ष्मण ने जब उन्हें अंदर जाने से रोका तब वह क्रोधित होकर अयोध्या नगरी को भस्म करने की बात करने लगे।
ऐसे लक्ष्मण जी अयोध्या नगर को बचाने के लिए श्रीराम के कक्ष में चले गए। लक्ष्मण जी को कक्ष में देख श्रीराम आश्चर्यचकित रह गए। स्वयं काल देवता से बचनबद्ध होने के चलते श्रीराम ने लक्ष्मण को प्राणदंड देने का निश्चय किया। वेदों में कहा गया है कि किसी सम्मानित अथवा प्रिय व्यक्ति को त्याग देना प्राणदंड देने के समान है। अत: श्रीराम ने लक्ष्मण का त्याग कर दिया। इसके बाद लक्ष्मण ने सरयू नदी में जल समाधि ले ली। नदी में प्रवेश करते ही लक्ष्मण ने शेषनाग का रूप धारण कर लिया और विष्णुलोक चले गए।
2- प्रभु श्रीराम
लक्ष्मण के जाने के बाद अब प्रभु श्रीराम ने भी प्राण त्यागने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने राज्यों का उत्तरदायित्व अपने पुत्रों को सौंप कर सरयू नदी में जल समाधि ले ली। सरयू नदी में प्रवेश करते ही श्रीराम ने विष्णुजी का रूप धारण कर लिया। वहां मौजूद तमाम भक्तों को अपने मूल रूप के दर्शन दिए। इसके बाद गरूड़ पर विराजमान होकर वह बैकुंठ धाम को चले गए।
3- भगवान श्रीकृष्ण
कौरवों विशेषकर दुर्योधन की मृत्यु से दुखी होकर माता गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दे दिया। कहते हैं गांधारी के श्राप के चलते ही श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई। कथा के अनुसार, एक बार श्रीकृष्ण प्रभास क्षेत्र स्थित जंगल में विश्राम कर रहे थे। तभी जरा नामक एक बहेलिया ने उनके पैरों को मृग जानकर उन पर तीर से चला दिया। तीर लगते ही श्रीकृष्ण ने अपना शरीर त्याग दिया और परलोक चले गए।
4- बलराम
श्रीकृष्ण के देवलोक गमन करने के बाद उनके बड़े भाई बलराम ने भी यह संसार त्यागने का निश्चय किया। बलराम ने समुद्र के किनारे बैठकर ध्यान समाधि के द्वारा अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया।
5- नृसिंह भगवान
शक्तिशाली राक्षस हिरण्यकश्यप का वध करने तथा अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए नृसिंह भगवान पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद भी नृसिंह भगवान का क्रोध शांत नहीं हुआ। उनके क्रोध से तीनों लोक कांपने लगे, इस समस्या के समाधान के लिए सभी देवता गण ब्रह्मा जी के साथ भगवान शिव के पास गए। इसके बाद नृसिंह भगवान का क्रोध शांत करने के लिए महादेव ने भगवान सरबेश्वर का स्वरूप धारण किया। 18 दिनों तक चले युद्ध के बाद भगवान सरबेश्वर से पराजित होकर नृसिंह ने प्राण त्यागने का निर्णय लिया। उन्होंने भगवान शिव से निवेदन किया कि वह उनकी चर्म को अपने आसन के रूप में स्वीकार करें।