कैसे और कब हुई थी किन्नरों की उत्पत्ति ? यहाँ जानिए
हमारे समाज में स्त्री पुरुष के अलावा थर्ड जेंडर भी होते हैं जिन्हे हम किन्नर कहते हैं। किन्नरों सभी शुभ अवसरों पर नाच गा कर अपना पेट भरते हैं। किन्नर जो तरह के होते हैं किन्न पुरुष और किन्नरी (स्त्री)
ये सब बात हम जानते हैं कि किन्नर होते हैं लेकिन ये नहीं जानते हैं कि किन्नरों की उत्पत्ति कैसे हुई? आज हम आपको इसी बारे में बताने जा रहे हैं। आज हम आपको इसी बारे में बताने जा रहे हैं।
बहुत समय पहले की बात है कि एक प्रजापति के यहां एक इल नाम का पुत्र था. बड़ा होकर वह धर्मात्मा राजा बना। उसे शिकार करना बेहद पसंद था तो वह सैनिकों के साथ एक बार शिकार करने गया। काफी शिकार करने के बाद भी उसका मन नहीं भरा। इसलिए वो और भी अधिक शिकार करना चाहता था। इसी कारण वह जंगल से होता हुआ उस पहाड़ पर जा पहुंचा जहां भगवान शिव माता पार्वती के साथ विहाग कर रहे थे। कहा जाता है कि पार्वती को खुश करने के लिए शिव ने खुद को स्त्री बना लिया था और जिस समय भगवान शिव ने स्त्री रूप धारण किया था, उस समय जंगल में जितने जीव – जंतू, पेड़ – पौधे थे सब स्त्री बन गए। वह राजा इल और उसके सैनिक भी स्त्री बन गए।
स्त्री बन कर राजा बेहद दुखी हुआ लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसने देखा कि शिव भी स्त्री बन गए हैं। इसे देखकर वो बहुत डर गया और निराश भी हुआ और भगवान शिव के चरणों में गिर गया और उसे फिर से पुरुष बनाने के लिए कहने लगा। भगवान शिव ने कहा कि तुम पुरुषत्व को छोड़कर कोई और वरदान मांग लो मैं दे दूंगा।
लेकिन इल ने दूसरा वरदान मांगने से मना कर दिया। इल वापस लौट कर माँ पार्वती की तपस्या करने में लग गया और उसकी तपस्या से खुश होकर माँ पार्वती ने उस से वरदान मांगने के लिए कहा।
उसने अपना पुरुषत्व वापस लौटाने का वरदान माता पार्वती से मांगा। लेकिन पार्वती ने कहा कि जो वरदान तुम मांग रहे हो उसके आधे दाता भगवान शिव है तो मैं तुम्हे आधा वरदान ही दे सकती हूँ। यानि तुम अपना आधा जीवन स्त्री रूप में और आधा जीवन पुरुष के रूप में व्यतीत कर सकते हो।
तब उसने पार्वती से कहा कि आप मुझे एक महीने स्त्री और एक महीने पुरुष बनने का वरदान दे दीजिए। तब माँ पार्वती ने उन्हें ये वरदान दे दिया कि कहा कि जब तुम स्त्री रहोगे तो तुम्हे पुरुष रूप के बारे में कुछ याद नहीं रहेगा और जब पुरुष रहोगे तो स्त्री रूप के बारे में कुछ याद नहीं रहेगा।
राजा को ये वरदान मिल चूका था लेकिन सारे सैनिक अभी भी स्त्री रूप में ही थे। तब वेघूमते – घूमते चंद्रमा के पुत्र महात्मा बुद्ध के आश्रम में पहुंच गए तब उन्होंने कहा कि तुम सब यहाँ ही किन्न पुरुषी यहाँ पर बस जाओ। तुम आगे पुको रुष पतियों को प्राप्त करोगे। इसी तरह किन्नरों की उत्पत्ति हुई।