...यहां सैनिक और पर्यटक शहीद जवानों के स्मारक पर चढ़ाते हैं पानी, जानिए क्यों
उत्तराखंड राज्य में उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 110 किमी दूर नेलांग घाटी है। हांलाकि नेलांग घाटी में कोई आबादी नहीं रहती है। वजह है, यहां पर बहुत बर्फ पड़ती है। हांलाकि इस घाटी में भारत तिब्बत सीमा पुलिस और सेना की चौंकियां है। लिहाजा सुरक्षाबलों के जवान यहां 12 महीने डयूटी पर तैनात रहते हैं। सर्दियों में यहां पर भारी बर्फबारी के कारण जवानों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि जवानों को बर्फ पिघलाकर पीना पड़ता है।
साल 1994 में सेना के 64 फील्ड रेजिमेंट के तीन जवान हवलदार झूम प्रसाद गुरंग, नायक सुरेंद्र सिंह और बहादुर यहां पर गश्त पर थे। लेकिन गश्त के दौरान जवानों का पानी खत्म हो गया और प्यास को बुझाने के लिए जवान नेलांग घाटी से 2 किलोमीटर नीचे आ रहे थे, जहां पानी का एक स्रोत था।लेकिन रास्ते में ही ये तीनों जवान बर्फ में दब गए और उनकी मौत हो गई। कई दिनों तक तलाश करने के बाद सेना को उन जवानों का शव बर्फ में मिला।
माना जाता है जो सैनिक यहां पर गश्त के लिए आए, उन सभी के सपने में वो जवान आए और पानी मांगने लगे। जिसके बाद आइटीबीपी ने यहां पर उन जवानों का स्मारक बनाया। तब से जो भी सैनिक या पर्यटक यहां से गुजरते हैं वो इस स्मारक पर पानी जरुर चढ़ाते हैं।हालांकि नेलांग घाटी पर्यटकों के लिए साल 2014 से ही खोली गई है।