वायु प्रदूषण एक गंभीर मुद्दा है, जिसकार कारण तेल, डीजल, बायोमास और गैसोलीन का दहन है। वायु प्रदूषण के सबसे खतरनाक पहलुओं में से एक पीएम 2.5 कणों की उपस्थिति है, जो उनके हानिकारक स्वास्थ्य प्रभावों के लिए जाने जाते हैं। लोग इस प्रदूषण का खामियाजा भुगतते हैं, जिससे स्वास्थ्य जोखिम बढ़ जाता है।

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कई अध्ययनों ने फेफड़ों और श्वसन रोगों में चिंताजनक वृद्धि को रेखांकित किया है, खासकर रोड़ के पास रहने वाले व्यक्तियों के बीच। इसके अलावा, शोध ने विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्तरों पर वायु प्रदूषण और मधुमेह के बीच एक चिंताजनक संबंध को स्पष्ट किया है।

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भारत में, वर्तमान में 77 मिलियन वयस्क टाइप 2 मधुमेह से जूझ रहे हैं, साथ ही अतिरिक्त 25 मिलियन व्यक्तियों को भविष्य में इस स्थिति के विकसित होने का उच्च जोखिम है। यह बढ़ता हुआ स्वास्थ्य संकट देश की खराब वायु गुणवत्ता के कारण और भी गंभीर हो गया है, जो विश्व स्तर पर सबसे खराब वायु गुणवत्ता में से एक है।

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2023 के आंकड़ों के अनुसार, भारत 134 देशों में वायु गुणवत्ता के मामले में तीसरे स्थान पर है, जहां औसत वार्षिक पीएम 2.5 सांद्रता 54.4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। यह चिंताजनक आँकड़ा वायु प्रदूषण के स्तर के मामले में भारत को केवल बांग्लादेश और पाकिस्तान से पीछे रखता है, जो शमन प्रयासों की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

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