आज के समय में हर कोई किसी न किसी बिमारी से परेशान है वहीं ये बात भी सच है कि ये बिमारियां कभी कभी इतनी परेशानी खड़ी कर देती है कि व्‍यक्ति को दवाईयों का ज्‍यादातर सहारा लेना पड़ता है लेकिन दवाइयां कहीं न कहीं शरीर में अन्‍य तरह से प्रभाव डालती है जो कि बेहद हानिकारक होती है। आज हम आपको कुछ ऐसी ही गंभीर बिमारियों के बारे में बताने जा रहे हैं और उसका इलाज भी बताने जा रहे हैं जो आपके काम की है।

आपको बता दें कि ये एक फल है जो स्वाद में खट्टा-मीठा है ये गर्मियों में आने वाला मौसमी फल है जो कि टमाटर की तरह दिखने में लाल मरून रंग का होता है। हम बात कर रहे हैं आलू बुखारा की जिसेअंग्रेजी में प्लम (plum)के नाम से जाना जाता है।

इसमें कई तरह के एंटी-ऑक्सीडेंट होते है जो कि ऑस्टियोपोरोसिस, हाई ब्‍लड़ प्रेशर, स्‍ट्रोक और आंखों से जुड़ी गंभीर बिमारियों को दूर करने में समस्याओं से बचाने में सहायक है और यह शरीर में आयरन की मात्रा बढ़ाता है।

1) वजन होता है कम
ये वजन कम करने में ये फायदेमंद साबित होता है। बताते चलें कि यूनिवर्सिटी इंस्‍टीट्यूट ऑफ साइकोलॉजी हेल्‍थ एंड सोसायटी द्वारा किए गए सर्वे में पाया कि वजन और मोटापे से ग्रस्‍त लोगों ने 12 हफ्ते तक रोजाना सूखे प्‍लम खाकर लगभग 2 किलो वजन कम कर लिया था। ये देरी से पचते हैं और लंबे समय तक भूख नहीं लगने देते।

2) हाइपरटेंशन का खतरा होता है कम
इस फल में मौजूद हाई पोटेशियम से ब्‍लड प्रेशर रेगुलेट करने में मदद मिलती है। सौ ग्राम सूखे प्‍लम में 745 मिलिग्राम पोटेशियम पाया जाता है। एक अध्‍ययन में पाया गया कि सूखे प्‍लम को भिगोकर उसकी केवल एक खुराक खाने वाले मरीजों को ब्‍लड प्रेशर नियंत्रित करने में मदद मिली थी।

3) हेपेटाइटिस के इलाज में सहायक
लम में हाई फाइबर होने की वजह से ये लीवर डिसऑर्डर जैसी बिमारियों का इलाज करने में सहायक होता है। लीवर सेल्‍स डैमेज होने की वजह से लीवर एंजाइम का लेवल बढ़े लोगों पर एक अध्‍ययन किया गया जिसमें इन लोगों को तीन सूखे प्‍लम दिए, जिन्‍हें रातभर पानी में भिगोकर रखा गया था।

4) दिल की सेहत के लिए बेहतर
बता दें कि सूखे प्‍लम धमनियों को खत्‍म कर देता है और हार्ट डिजीज़ जैसी बिमारियों से बचने के लिए बेहद लाभदायक है। इसके अलावा हाई फाइबर होने की वजह से भी ये हार्ट डिजीज़ से बचाने में मददगार हैं। सर्वे के अनुसार बताया गया है कि हाई फाइबर के सेवन से कोरोनरी हार्ट डिजीज़ का खतरा 12 फीसदी और कार्डीओवैस्क्यलर डिजीज़ का खतरा 11 फीसदी तक कम किया जा सकता है।

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