हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, कुबेर का स्थान धन के देवता के रूप में है। जबकि कुबेर देवता नहीं बल्कि गंधर्व हैं। मान्यता है कि कुबेर के पास ही सृष्टि का स्वर्ण भंडार है। लोक मान्यता के अनुसार, सोने की लंका का निर्माण कुबेर ने करवाया था। जबकि रामायण में वर्णित है कि कुबेर का सौतेला भाई था रावण। उसने सोने की लंका कुबेर से छीन ली थी। हम आपको सोने की लंका का निर्माण करने के बाद कुबेर में उपजे घमंड से जुड़ी एक रोचक कथा बताने जा रहे हैं।

असीमित स्वर्ण भंडार के मालिक कुबेर

यह बात उन दिनों की है, जब स्वर्ण भंडार के मालिक कुबेर ने सोने की लंका का निर्माण करवाया। स्वाभाविक है, सोने की लंका बनवाने के बाद अपने ऐश्वर्य का प्रदर्शन करने के लिए कुबेर का मन व्याकुल हो उठा। उन्होंने अपने वैभव का प्रदर्शन करने के लिए एक भव्य भोज का आयोजन किया, जिसमें अनेक देवता भी शामिल हुए। इसके बाद भी उनका गर्वित मन संतुष्ट नहीं हुआ, तो कुबरे ने सोचा कि क्यों ना अब ब्रह्मा, विष्णु और महेश को आमंत्रित किया जाए।

लेकिन कुबेर को याद आया कि विष्णु जी तो धन की साक्षात स्वरूप मां लक्ष्मी के अधिपति हैं। उनके सामने यह वैभव कहीं नहीं ठहर पाएगा। ब्रह्मा जी ठहरे ज्ञानी, धन-संपदा से उनका कुछ लेना-देना नहीं इसलिए एक व्याघ्रचर्म धारण करने वाले, खुले पहाड़ों में रहने वाले भगवान शिव जब मेरी स्वर्ण नगरी लंका को देखेंगे तो आश्चर्यचकित रह जाएंगे। यही सोचकर कुबेर भगवान शिव को आमंत्रित करने के लिए कैलाश पर्वत चले आए।

महादेव की जगह श्री गणेश जी
कुबेर जब कैलाश पर्वत पहुंचे, तब महादेव ध्यान में थे। बहुत देर बाद जब वह ध्यान से उठे तो कुबेर को देखते ही उनके मन का भाव जान गए। कुबेर ने कहा कि भगवान मैंने एक छोटा सा घर बनवाया है और मेरी इच्छा है कि आप मेरे घर को अपनी चरणधूलि से पवित्र करें। कृपया मेरे यहां भोजन का निमंत्रण स्वीकार करें। भगवान शिव ने बधाई देते हुए कुबेर से कहा कि मैं तो नहीं आ सकूंगा लेकिन मेरा पुत्र गणेश अवश्य आपके निमंत्रण का मान रखेगा। उस समय किशोरवय गणेश जी को निमंत्रण देकर वह लंका नगरी लौट आए। कुबेर ने सोचा कि पिता ना सही, बेटा ही सही। मेरा ऐश्वर्य देखकर अपने घर में कुछ तो चर्चा करेगा।

गणेश जी हैं भोजन प्रेमी
दूसरे दिन निश्चित समय पर गणेश जी अपने वाहन मूषक पर विराजमान होकर कुबेर के यहां पहुंच गए। कुबेर ने गणेश जी के समक्ष लंका दर्शन का प्रस्ताव रखा। तब गणेश जी ने कहा कि मैं तो भोजन करने आया हूं, आपकी लंका देखने नहीं। उन्होंने कहा कि भोजन लगवा दीजिए, मुझे भूख लगी है। कुबेर को गणेश जी की भूख का अंदाजा नहीं था। गणेश जी ने कुबेर के घर का सारा भोजन पलक झपकते ही साफ कर दिया और अधिक मात्रा में भोजन लाने को कहा।

लंका का सारा भोजन खत्म होने के बाद भी जब गणेश जी भूखे रह गए तब कुबेर ने हाथ जोड़कर माफी मांग ली और भोजन परोसने में असमर्थता जता दी। गणेश जी बहुत नाराज हुए और बोले कि तुम तो एक व्यक्ति को भरपेट भोजन तक नहीं करा सकते, फिर तुम्हारे इस धन-ऐश्वर्य और स्वर्ण की लंका का क्या मोल? पहले भोजन की व्यवस्था तो कर लेते, फिर निमंत्रण देते। इस प्रकार गणेश जी के वचन सुनकर कुबेर शर्म से पानी-पानी हो गए।

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