इंसान के जीवन से दुखों को हरनेवाले और सुखों का भंडार भरनेवाले विघ्नहर्ता गणेश की पूजा इस पूरे संसार में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करने से पहले की जाती है, वैसे इस साल 22 अगस्त यानी शनिवार को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाएगा। लेकिन इस अवसर पर आपको बता दें पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान गणेश को गजमुख या गजानन के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि उनका मुख गज यानि हाथी का है।

धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान गणेश का असली मस्तक कट जाने के बाद गजमुख लगाया गया था। लेकिन अब सवाल ये उठता है कि भगवान गणेश का असली मस्तक कहाँ गया?


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने अपने तन के मैल से श्रीगणेश का स्वरुप तैयार किया था और वे जब स्नान करने गई तो उन्होंने बालक गणेश को द्वार पर पहरा देने की आज्ञा दी और कहा कि किसी को भी अंदर प्रवेश नहीं करने देना। माता की आज्ञा पाकर बालक गणेश पहरा देने के लिए द्वार पर खड़े हो गए।

इसी दौरान वहां पर भगवान शंकर आ गए तब बालक गणेश ने भगवान शंकर को अन्दर जाने से रोका। जब भगवान शंकर ने कहा कि वे माता पार्वती के पति है तब भी बालक गणेश नहीं मानें और उन्होंने भगवान शंकर को चुनौती देते हुए अंदर जाने से रोक दिया। तब क्रोध में आकर अनजाने में ही भगवान शंकर ने श्री गणेश का मस्तक काट दिया और वह कटा हुआ मस्तक चंद्रलोक में चला गया।

बाद में माता पार्वती ने गणेश का कटा हुआ सिर देखा तो वे भगवान शंकर से रुष्ट हो गई और अपने गणेश को वापस सही सलामत लाने की मांग करने लगी। तब भगवान शिव ने कटे हुए मस्तक की जगह गजमुख या हाथी का मस्तक जोड़ा।

ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेश का असली मस्तक चन्द्रमंडल में है और इसी वजह से धार्मिक परम्पराओं में संकट चतुर्थी पर चन्द्रदर्शन व अर्ध्य देकर गणेश की उपासना को मंगलकारी कहा गया है।

Related News