बापू महिलाओं को समान अधिकारों की पुरजोर वकालत करते थे। महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर भी बापू के विचार स्‍पष्‍ट थे। एक पत्र में उन्‍होंने महिलाओं को 'आत्‍मरक्षा' के लिए जो बन पड़े, वो करने की सलाह दी है। वह मानते थे कि बलात्‍कार का शिकार हुई स्‍त्री का किसी भी ल‍िहाज से तिरस्‍कार नहीं होना चाहिए।

'द माइंड ऑफ महात्‍मा गांधी' किताब में दुराचार और महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर विचार गांधीजी के संकलित किए गए हैं। इसके अनुसार गांधीजी ने कहा है कि अगर महिला हमलावर की शारीरिक ताकत का मुकाबला नहीं कर सकती तो उसकी पवित्रता उसकी ताकत बनती है।

बापू से एक महिला ने बलात्कार के बारे में तीन सवाल पूछे थे।

1. यदि कोई राक्षस-रूपी मनुष्य राह चलती किसी बहन पर हमला करे और उससे बलात्कार करने में सफल हो जाए, तो उस बहन का शील-भंग हुआ माना जाएगा या नहीं?

2. क्या वो बहन तिरस्कार की पात्र है? क्या उसका बहिष्कार किया जा सकता है?

3. ऐसी स्थिति में पड़ी हुई बहन और जनता को क्या करना चाहिए?


जवाब में बापू ने ‘हरिजनबंधु’ नाम की गुजराती पत्रिका में मार्च 1942 में लिखा, "जिस पर बलात्कार हुआ हो, वह स्त्री किसी भी प्रकार से तिरस्कार या बहिष्कार की पात्र नहीं है। वह तो दया की पात्र है। ऐसी स्त्री तो घायल हुई है, इसलिए हम जिस तरह घायलों की सेवा करते हैं, उसी तरह हमें उसकी सेवा करनी चाहिए।

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