भगवान गणेश जी के एक दंत कहलाने की कहानी तो अपने सुनी ही होगी। कहा जाता है कि परशुराम और गणेश जी में युद्ध इसी बैलाडीला पहाड़ीयों में हुआ था। कहा जाता है कि परशुराम के फरसे के प्रहार से गणेश जी का एक दांत टूटकर यहीं गिर गया था। ढोलकल की पहाड़ी पर स्थित भगवान गणेश जी की ये प्राचीन मूर्ति आज भी उस प्राचीन समय की यादों को ताजा कर देती है। इस 25 जनवरी को ये ऐतिहासिक गणेश जी प्रतिमा अचानक गायब हो गई थी। जब पुलिस के जवानों ने इसे खोजा तो ढाई हजार फीट नीचे 10वीं शताब्दि की ये मूर्ति गिरकर टूट चुकी थी। इसे ड्रोन के जरिए सर्च करने के बाद वापस लाया गया और आर्कियोलॉजी विभाग की मदद से जोड़कर उसी जगह फिर से स्थापित किया गया।

कई समय तक तप भगवान की प्रतिमा के गिरने की गुत्थी सुलझ ही नहीं पायी फिर पता चला कि प्रतिमा को गिराने में एक नक्सली का हाथ है उसे बाद में पुलिस और सीआरपीएफ की हिरासत में ले लिया गया था। दंतेवाड़ा से करीब 22 किमी दूर ढोलकल पहाड़ी पर बड़े आराम की मुद्रा में विराजे गणेश जी की प्रतिमा है। भगवान की इस प्रतिमा के सामने खड़े होने पर चारो ओर सैकड़ों फीट गहरी खाई और घना जंगल है। ये प्रतिमा कब और कैसे यहां आई किसी को कुछ भी नहीं पता , पुरातत्ववेत्ताओं की मानें तो ये प्रतिमा 11वीं सदी की है। तब यहां नागवंशीय राजाओं का शासन हुआ करता था। प्रतिमा में गणेश जी के पेट पर नाक का चित्र है। ये तथ्य इस बात को और मजबूती देता है कि ये प्रतिमा नागवंशीय राजाओं के काल का है। लेकिन यहां ये मूर्ति कैसे पहुंची और क्यों, इसके बारे में अभी तक कोई साक्ष्य नहीं मिल पाए है।


गणेश जी की ये मूर्ति काफी अलग और अद्भुत है, इसका आकार गोल - मटोल ढोलक की तरह है इसलिए इनका नाम ढोलकल गणेश जी रख दिया गया है।
ये प्रतिमा करीब 100 किलो की है जो ग्रेनाइट स्टोन से बनी है।यह भूमि तल से 2994 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। यहां के स्थानीय आदिवासी बताते हैं कि ढोलकल पहाड़ी के सामने एक और पहाड़ी है जहां सूर्यदेव की प्रतिमा थी जो 15 साल पहले चोरी हो गयी थी। ऊँची पहाड़ी पर बसे गणेश जी की ये मूर्ति आज भी बिल्कुल खुली पहाड़ी पर उसी तरह विराजमान है। जिस तरह इसे पहली बार देखा गया था।

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