महाकाल की पहली आरती श्मशान में सुबह जलने वाली चिता के राख से होती है, जानिए क्यों ?
बता दें कि मध्य प्रदेश में उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में दिन में 6 बार आरती होती है, जिसमें सबसे खास महाकाल की भस्म आरती को माना जाता है। महाकाल की भस्म आरती सुबह 4 बजे की जाती है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल है महाकालेश्वर मंदिर। इस स्टोरी में हम आपको महाकाल की भस्म आरती से जुड़े कुछ रहस्य बताने जा रहे हैं।
- बता दें कि सुबह 4 बजे महाकाल की भस्म आरती होती है। मंदिर में महाकाल का श्रृंगार श्मशान में जलने वाली सुबह की पहली चिता की राख से किया जाता है।
- महाकाल की भस्म आरती के लिए पहले से ही लोग मंदिर में रजिस्ट्रेशन करवाते हैं ताकि मृत्यु के बाद उनकी भस्म से ही भोलेनाथ का श्रृंगार किया जाए।
- महाकाल की भस्म आरती में शामिल होने के लिए महिलाओं को साड़ी तथा पुरुषों को साफ-सुथरी सूती धोती पहननी पड़ती है। भस्म आरती केवल पुजारी ही कर सकते हैं।
- महिलाएं जिस समय महाकाल पर भस्म चढ़ती है, उस वक्त उन्हें घूंघट में रहना पड़ता है। मान्यता है कि उस समय भगवान शिव निराकार स्वरूप में होते हैं। भगवान शिव के इस स्वरूप में दर्शन करने की अनुमति महिलाओं को नहीं होती है।
गौरतलब है कि महाकालेश्वर मंदिर में पहली आरती सुबह 4 बजे भस्म आरती होती है, दूसरी आरती में भगवान शिव को घटा टोप रूप दिया जाता है। तीसरी आरती में शिवलिंग को हनुमान जी के रूप में पूजा जाता है। चौथी आरती में महाकाल की शेषनाग अवतार में उपासना की जाती है। उनके पांचवे स्वरूप में भगवान शिव को दूल्हा बनाया जाता है। महाकालेश्वर की छठी आरती शयन आरती होती है।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, एक बार उज्जैन में दूषण नाम के राक्षस का भगवान शिव ने वध किया था। युद्ध में उस राक्षस का वध करने के बाद उन्होंने उसकी राख से अपना श्रृंगार किया था।