शाहजहाँ के 7 पुत्र होने के बावजूद भी आखिर उनकी अर्थी को कंधा किन्नरों ने क्यों दिया? जानिए
शाहजहाँ पांचवे मुग़ल शहंशाह था। शाह जहाँ अपनी न्यायप्रियता और वैभवविलास के कारण अपने काल में बड़े लोकप्रिय रहे। शाहजहाँ का नाम एक ऐसे आशिक के तौर पर लिया जाता है जिसने अपनी बेग़म मुमताज़ बेगम के लिये विश्व की सबसे ख़ूबसूरत इमारत ताज महल बनाने का यत्न किया।
शाहजहाँ मुगल वंश जहाँगीर के पुत्र और अकबर के पोते थे। उनका जन्म पाकिस्तान के लाहौर में 5 जनवरी 1592 ई0 में हुआ था और मृत्यु 22 जनवरी 1666 ई0 में आगरा फोर्ट में हुई थी। शाहजहाँ का विवाह आसफ खां की पुत्री अर्जुमन्द बानो बेगम से हुआ। जिसे शाहजहाँ ने मलिका-ए-जमानी की उपाधि प्रदान की। जो आगे चलकर मुमताज के नाम से जानी गई।
फरवरी 1628 ई0 में शाहजहाँ राजगद्दी पर बैठा। गद्दी पर बैठते ही शाहजहाँ 1632 ई0 में पुर्तगालियों के प्रभाव को समाप्त कर किया। ऐसे कई युद्धों को अंजाम देने वाले शाहजहाँ को अपने बेटों औरंगजेब, दारा शिकोहा, शाहशुजा, मुराद बख्श, सुल्तान उम्मीद बख्श, सुल्तान लुफ्ताल्ला और सुल्तान दौलत अफजा 7 पुत्रों में से किसी का भी कन्धा नसीब नहीं हुआ।
शाहजहाँ की अर्थी को कन्धा उसके साधारण नौकरों और किन्नरों ने दिया। इसका कारण यही रहा कि 7 पुत्रों में से 3 की जन्म से कुछ ही महीनों और वर्षों में मृत्यु हो गई थी और बाकी के चारों में शाहजहाँ की राजगद्दी के लिए युद्ध हुआ जिसमें सिर्फ छल कपट से औरंगजेब ही शाहजहाँ को आगरा के महल में कैद करके सिंहासन पर बैठा।