सबसे ज्यादा इस व्यक्ति से प्रेम करती थीं द्रौपदी, आप भी जानें आखिर कौन था वो शख्स
महाभारत के बारे में आप सभी ने बचपन से ही सुना होगा यह विश्व का सबसे लंबा व साहित्यिक महा ग्रंथ माना जाता है। हिंदू धर्म में आपको ऐसी कई ग्रंथ मिल जाएंगे जो जीवन जीने का पाठ पढ़ाती हो और तो और इस तरह के ग्रंथ से कई सारी सीख बन जाती है अगर हिंदू धर्म की माने तो कहा जाता है कि महाभारत रचनाकार वेदव्यास जी ने लिखा है जिसे रचने में पूरे 6 वर्ष लगे थे।
वैसे महाभारत में तो कई पात्र थे लेकिन जब भी महाभारत का नाम आता है तो सबसे पहले दिमाग में पांडव और कौरव की प्रतिमा बन जाती है। वहीं इसमें एक और पात्र है जो बेहद ही महत्वपूर्ण है वह है द्रौपदी जी हां आज हम आपको उन्हीं के बारे में कुछ विशेष बातें बताने जा रहे हैं सबसे पहले तो आप यह जान लें।
द्रौपदी के जीवन और चरित्र को समझना बहुत ही कठिन है। उन्हें तो सिर्फ कृष्ण ही समझ सकते थे। द्रौपदी श्रीकृष्ण की मित्र थी। महाभारत में बताया गया है की द्रौपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री है जो बाद में पांचों पाण्डवों की पत्नी बनी। द्रौपदी पंच-कन्याओं में से एक हैं जिन्हें चिर-कुमारी कहा जाता है। ये कृष्णा, यज्ञसेनी, महाभारती, सैरंध्री आदि अन्य नामो से भी विख्यात है। द्रौपदी का विवाह पाँचों पाण्डव भाईयों से हुआ था। पांडवों द्वारा इनसे जन्मे पांच पुत्र उप-पांडव नाम से विख्यात थे।
सबसे पहले तो आपको ये बता दें की शुरूआत में जब द्रौपदी की शादी की बात आई तो वो कर्ण से शादी करना चाहती थी, लेकिन जब उसे पता चला कि कर्ण तो सूत पुत्र है तो उसने अपना इरादा बदल दिया। उसने पहली बात तो यह कि कर्ण को स्वयंवर की प्रतियोगिता में भाग नहीं लेने दिया और दूसरा यह कि उसने कर्ण को बुरी तरह अपमानीत किया। यदि वह ऐसा नहीं करती तो परिणाम कुछ ओर होता। जिसके बाद अर्जुन ने ये स्वयंवर की प्रतियोगिता को जीत लिया था जिसके बाद से वो पांच पांडवों की पत्नी बनकर रहने लगी।
लेकिन द्रौपदी ने ही इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के समय दुर्योधन को कहा था, ‘अंधे का पुत्र भी अंधा।’ बस इसी का बदला लेने के लिए द्रौपदी का चीरहरण हुआ और फिर अपनी चिरहरण के बाद द्रौपदी ने पांडवों से कहा कि यदि तुम दुर्योधन और उनके भाइयों से मेरे अपमान का बदला नहीं लेते हो तो धिक्कार है तुम्हें। द्रौपदी ने पांडवों से कहा कि मेरे केश अब तब तक खुले रहेंगे जब तक कि दुर्योधन के खून से इन्हें धो नहीं लेती। उस समय द्रौपदी ने ऋतु स्नान नहीं था।
जब भरी सभा में दुर्योधन द्वारा द्रौपदी का अपमान किया गया और सम्पूर्ण मानवता उस एक क्षण में तार तार कर दी गयी, उस समय भीम के अलावा अन्य किसी ने भी अपनी आवाज़ नहीं उठाई थी। ऐसे में भीम ने कसम खाई कि मैं दुर्योधन की जांघ को गदा से तोड़ दूंगा और दु:शासन की छाती को चीरकर उसका रतक्तपान करूंगा। जिसके बाद से द्रौपदी पांचों पांडवों में से सबसे अधिक भीम को चाहने लगी।