भगवान शिव की पूजा में भूलकर भी न करें शंख का प्रयोग, नहीं तो होगा ऐसा
धार्मिक दृष्टि से शंख बहुत पवित्र माना जाता है। घर और मंदिर में शंख रखना बहुत शुभ माना जाता है। किसी भी पूजा में शंख रखा जाता है और आरती करने के बाद इसके जल को सभी के ऊपर छिड़का जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु को शंख अतिप्रिय है। माना जाता है कि पूजा स्थल पर शंख रखने से घर में सुख-समृद्धि आती है और नकारत्मक ऊर्जा का नाश होता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव की पूजा में शंख का इस्तेमाल वर्जित माना गया है। भगवान शिव की पूजा में शंख क्यों वर्जित है इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जिसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राधा गोलोक से कहीं बाहर गई हुई थीं। उस समय श्री कृष्ण अपनी विरजा नाम की सखी के साथ विहार कर रहे थे। संयोगवश उसी समय राधा वहाँ आ गईं और श्री कृष्ण को विरजा के साथ बहुत क्रोधित हो गईं। क्रोध में राधा ने कृष्ण एवं विरजा को बहुत भला बुरा कहना शुरू कर दिया। लज्जावश विरजा नदी बनकर बहने लगी। श्री कृष्ण के प्रति राधा के क्रोधपूर्ण शब्दों को सुनकर कृष्ण का मित्र सुदामा को गुस्सा आ गया और वे राधा से ऊँचे स्वर में बात करने लगे। सुदामा के इस व्यवहार को देखकर राधा क्रोधित हो गईं और उन्होंने सुदामा को दानव रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया।
सुदामा ने भी क्रोध में हित अहित का विचार किए बिना राधा को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। राधा के श्राप से सुदामा शंखचूर नाम का दानव बना। शंखचूर का उल्लेख शिवपुराण में मिलता है। शिव पुराण के अनुसार दंभ नाम के राक्षस ने कई सालों तक भगवान विष्णु की कठिन तपस्या की जिसके बाद खुश होकर उसको भगवान विष्णु ने दर्शन दिए और वर मांगने को कहा। इस पर उसने विष्णु भगवान से तीनों लोकों में अजेय और महापराक्रमी पुत्र का वर मांगा। विष्णु भगवान के वरदान से शंखचूर अपने पराक्रम के बल के पर तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा। शंखचूर देवताओं और साधु-संतों को सताने लगा। तब सभी देवता शिव जी के पास गए और उनसे प्रार्थना की कि वे सबकी रक्षा करें। तब भगवान शिव ने शंखचूर का वध कर दिया। मान्यता के अनुसार शंखचूर की हड्डियों से ही शंख का जन्म हुआ था और इस कारण से शिव जी की पूजा में शंख का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।