दिवाली का त्यौहार आने वाल्ला है। भगवान श्रीराम द्वारा रावण पर जीत के लिए मनाया जाता हैं। आपको बता दें कि भगवान राम एक अवतार थे और उन्होंने धरती पर एक मनुष्य के रूप में जन्म लिया था और ये बात हम जानते हैं कि जो भी इस धरती पर जन्मा हैं उसकी मृत्यु निश्चित हैं। ऐसे में कई लोगों के मन में सवाल आता हैं कि भगवान श्रीराम के प्राण कैसे गए। आज हम आपको इसी बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। आज हम जानेंगे की भगवान श्री राम कैसे इस लोक को छोड़कर वापस विष्णुलोक गए।

भगवान श्री राम के मृत्यु के समय सबसे बड़ी बाधा हनुमान जी थे। उनके होते हुए कोई भी श्री राम के निकट भी नहीं पहुंच सकता था। फिर इसका हल खुद श्री राम ने निकाला था। जब राम जान गए कि उनकी मृत्यु का समय हो गया है। उन्होंने कहा कि “यम को मुझ तक आने दो। मेरे लिए वैकुंठ, मेरे स्वर्गिक धाम जाने का समय आ गया है।" लेकिन मृत्यु के देवता यम अयोध्या में घुसने से डरते थे क्योंकि उनको राम के परम भक्त और उनके महल के मुख्य प्रहरी हनुमान से भय लगता था।

यम को वहां पर प्रवेश करवाने के लिए वहां से हनुमान जी को हटाना जरूरी था। इसलिए राम ने अपनी अंगूठी को महल के फर्श के एक छेद में से गिरा दिया और हनुमान से इसे खोजकर लाने के लिए कहा। तब हनुमान जी ने भँवरे जैसा आकार लिया और केवल उस अंगूठी को ढूढंने के लिए छेद में प्रवेश कर गए, वह छेद केवल छेद नहीं था बल्कि एक सुरंग का रास्ता था जो सांपों के नगर नाग लोक तक जाता था। हनुमान नागों के राजा वासुकी से मिले और अपने आने का कारण बताया।

वासुकी हनुमान को नाग लोक के मध्य में ले गए वहां पर अंगूठियों का पहाड़ था! “यहां आपको राम की अंगूठी अवश्य ही मिल जाएगी” वासुकी ने कहा। हनुमान जी तब सोच में पड़ गए कि वे अंगूठी को कैसे ढूंढ पांएगे क्योकिं वहां पर अंगुठी ढूँढना भूसे में सुई ढूंढ़ने जैसा था। लेकिन सौभाग्य से, जो पहली अंगूठी उन्होंने उठाई वो राम की अंगूठी थी। आश्चर्यजनक रुप से, दूसरी भी अंगूठी जो उन्होंने उठाई वो भी राम की ही अंगूठी थी। वास्तव में वो सारी अंगूठी जो उस ढेर में थीं, सब एक ही जैसी थी। “ इसलिए वे सोच में पड़ गए।


वासुकी मुस्कुराए और बाले, “जिस संसार में हम रहते है, वो सृष्टि व विनाश के चक्र से गुजरती है। प्रत्येक सृष्टि चक्र को एक कल्प कहा जाता है। हर कल्प के चार युग या चार भाग होते हैं। दूसरे भाग या त्रेता युग में, राम अयोध्या में जन्म लेते हैं। एक वानर इस अंगूठी का पीछा करता है और पृथ्वी पर राम मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इसलिए यह सैकड़ो हजारों कल्पों से चली आ रही अंगूठियों का ढेर है। सभी अंगूठियां वास्तविक हैं। अंगूठियां गिरती रहीं और इनका ढेर बड़ा होता रहा। भविष्य के रामों की अंगूठियों के लिए भी यहां काफी जगह है”।

हनुमान जान गए कि उनका नाग लोक में प्रवेश और अंगूठियों के पर्वत से साक्षात, कोई आकस्मिक घटना नहीं थी। यह राम का उनको समझाने का मार्ग था कि मृत्यु को आने से रोका नहीं जा सकेगा। राम मृत्यु को प्राप्त होंगे। संसार समाप्त होगा। लेकिन हमेशा की तरह, संसार पुनः बनता है और राम भी पुनः जन्म लेंगे।

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