दुनिया में कई जनजातियां हैं जिनके अपने अलग नियम कानून होते हैं। इनमे से कई नियम हमारे लिए बेहद ही चौकाने वाले होते हैं जिन पर हम यकीन नहीं कर पाते। आज हम आपको एक ऐसे समुदाय के बारे में बताने जा रहे है जहाँ पर पत्नियां अपने पतियों के जीवित होते हुए भी हर साल कुछ समय के लिए विधवाओं के समान जीवन जीती है। हम बात कर रहे हैं गछवाहा समुदाय' की, इस समुदाय की महिलाऐं काफी समय से इस रिवाज का पालन कर रही है। ऐसा माना जाता है कि यहां की महिलाएं अपनी पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए हर साल विधवाओं की तरह रहती हैं।

दरअसल, गछवाहा समुदाय के लोग मुख्यतः पूर्वी उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं। यहाँ पर रहने वाले आदमी लगभग पांच माह तक पेड़ों से ताड़ी उतारने का काम करते हैं। तब महिलाऐं विधवाओं की तरह रहती है। इस दौरान वह न तो सिंदूर लगाती हैं और नहीं माथे पर बिंदी। वे किसी तरह का श्रृंगार भी नहीं करती और बेहद उदास रहती है।

गछवाहा समुदाय में तरकुलहा देवी को कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है। जब समुदाय के सभी पुरुष ताड़ी उतारने का काम करते हैं तो उनकी पत्नियां अपना सारा श्रृंगार देवी के मंदिर में रख देती हैं। जिस पेड़ से वे ताड़ी उतारते हैं वे बहुत ही ऊंचे होते हैं और जरा सी भी चूक होने पर इंसान पेड़ से नीचे गिर सकता है और इससे उसकी मौत हो सकती है। इस कारण वहां की महिलाऐं अपनी कुलदेवी से अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं और श्रृंगार को उनके मंदिर में रख देती हैं। उनका मानना है कि अपने श्रृंगार के सामना से कुलदेवी प्रसंन्न हो जाती है और उनके पति कई महीनों के काम के बाद सकुशल लौट आते हैं।

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