जैसा कि हम जानते है कि देश में 4 फरवरी को कैंसर डे मनाया जाता है। इस मौके पर आम लोगों के बीच कैंसर के खतरे को जागरूक किया जाता है। लोगों को बताया जाता है कि इस बीमारी को रोकने के लिए क्या निवारक कदम उठाए जा सकते है या शुरुआती चरण में ही इसका कैसे पता लगाया जा सकता है।
लेकिन प्राचीन समय में जब हमारे पास इतनी टेक्नोलोज़ी नहीं थी तब इस बीमारी का इलाज कैसे किया जाता था। आज हम आपको यहां पुराने दिनों में कैंसर के इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाले अनोखे तरीके के बारे में जानकारी दे रहें है।
​लोमड़ी का फेफड़ा और मेंढक :
लगभग 17वीं सदी के बीच में कैंसर की बीमारी को सही करने के लिए अजीब तरह की चीजें खायी जाती थी। इसमें लोमड़ी का फेफड़ा, मेंढक, कौए की टांग, कछुए का जिगर और छिपकली का खून इन सबको एक दवा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था।


खरगोश के दिमाग का टीका : मिली जानकारी के अनुसार 19वीं सदी में कैंसर के इलाज के लिए एक नया सुझाव पेश किया गया जिस पर कभी अमल नहीं किया गया। कहावत तो आज भी मशहूर है कि 'लोहा - लोहे को काटता है, ज़हर ज़हर को मारता है ' इस सिद्धांत पर इस तरह की बीमारियों से लड़ने के लिए उसके रोगाणु को टीके के जरिए लोगों के शरीर में प्रवेश कराया जाता है। यह रोगाणु बाहर से आने वाले रोगाणु से लड़ता है और उसे शरीर में बीमारी फैलाने नहीं देता है।
​मांस से इलाज :
पहले कैंसर के इलाज के लिए खरगोश, कुत्ते के बच्चे या बिल्ली के बच्चे या किसी मेमने का वध किया जाता था। फिर उसके मांस को कैंसर पीड़ित अंग के सामने लहराते थे। इससे ऐसा माना जाता था कि शरीर के अंदर भेड़िए के रूप में बुरी आत्मा होती है जिसकी वजह से कैंसर होता है। मांस को देखकर वह भेड़िए शरीर के बाहर आ जाता है।

​शरीर की सफाई :
प्राचीन काल में कहां जाता था कि शरीर में चार हार्मोन्स होते है। उनमें से किसी एक में असंतुलन होने पर कैंसर का रोग होता है। इसके लिए कैंसर पीड़ित के शरीर को शुद्ध करना बेहद जरूरी है, और शरीर को शुद्ध करने के लिए या तो उनके शरीर से खून निकाला जाता था या उन्हें बार - बार उल्टी करायी जाती थी। मरीजों को ऐसी औषधि दी जाती थी जिससे काफी दस्त हो और उनके शरीर से पूरी गंदगी बाहर निकल सकें।

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