जहां नॉन-वेज का नाम सुनते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है. ये सारी चीजें भले ही खाने में आपको स्वादिष्ट लगती हैं लेकिन नॉन-वेज खाना न तो सेहत के नज़रिए से फायदेमंद है और न हमारी संस्कृति इसकी इज़ाजत देती है। हम आपको धर्मशास्त्रों के अनुसार बताते हैं कि इंसानों को नॉन-वेज खाना क्यों नहीं खाना चाहिए।

हिंदू धर्मशास्त्र: हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक इस धरती पर रहनेवाले सभी जीवों को भगवान का अंश माना जाता हैं, इनमें से किसी भी जीव की हत्या करना शास्त्रों के मुताबिक पाप है.,मांसाहार भोजन के लिए रोज़ाना न जाने कितने ही बेज़ुबान जानवरों की बलि चढ़ाई जाती है, जबकि हमारी संस्कृति में मांसाहार के सेवन को वर्जित माना गया है।

श्रीमद् भगवत गीता: श्रीमद् भगवत गीता के मुताबिक कहा जाता है कि नॉन-वेज खाना इंसानों का खाना नहीं बल्कि राक्षसी भोजन है, मांस और मदिरा जैसी चीजें तामसिक भोजन कहलाती हैं, इस तरह का भोजन करनेवाले लोग अक्सर कुकर्मी, रोगी, दुखी और आलसी होते है।

सनातन संस्कृति: सनातन संस्कृति में गौमांस को खाना पाप माना गया है। शास्त्रों के अनुसार गाय का दूध, घी, गोबर और गोमूत्र अनेक रोगों की एक दवा है।

ऋग्वेद: ऋग्वेद में गाय को जगत माता का दर्जा दिया गया है.,अनेकों पुराणों के रचियता वेद व्यास जी के मुताबिक गाय धरती की माता हैं और उनकी रक्षा में ही समाज की उन्नति है।

महाभारत: महाभारत में उल्लेख मिलता है कि जो व्यक्ति सौ सालों तक लगातार अश्वमेघ यज्ञ करता है और जो व्यक्ति मांस नहीं खाता, उनमें से मांसाहार का त्याग करनेवाला व्यक्ति ही ज्यादा पुण्य कमाने वाला माना जाता है।

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